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वैक्सीन की एक डोज से खतम होगा एचआईवी, जानिए क्या है इलाज

एचआईवी एड्स जैसी लाइलाज बीमारी का इलाज खोजने के लिए, तेल अवीव विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शरीर में मौजूद टाइप-बी वाइट ब्लड सेल्स के जीन में कुछ बदलाव किए, जिससे एचआईवी वायरस मर गया.

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By Pooja Mishra | खबरें - 15 June 2022

एचआईवी एड्स जैसी लाइलाज बीमारी का इलाज खोजने के लिए, तेल अवीव विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शरीर में मौजूद टाइप-बी वाइट ब्लड सेल्स के जीन में कुछ बदलाव किए, जिससे एचआईवी वायरस मर गया. कुछ दिन पहले रेक्टल कैंसर मरीजों को ठीक करने में सफलता मिली थी.

एचआईवी-एड्स से निजात

कैंसर के बाद वैज्ञानिकों ने शायद एचआईवी-एड्स जैसी लाइलाज बीमारी से निजात पा ली है. ऐसी वैक्सीन बनाने में सफलता मिली है, जिसकी एक ही खुराक एचआईवी वायरस को मार सकती है. इज़राइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए इस टीके के प्रयोगशाला परिणाम बहुत अच्छे रहे हैं. वैज्ञानिकों ने शरीर में मौजूद टाइप-बी वाइट ब्लड सेल्स के जीन में कुछ बदलाव किए, जिससे एचआईवी वायरस टूट गया. इस सफलता ने उम्मीद जगाई है कि एचआईवी-एड्स जैसी बीमारी का इलाज भी दूर नहीं है.

एचआईवी-एड्स का कोई इलाज नहीं था

एचआईवी-एड्स का अभी तक कोई इलाज नहीं है. हालांकि दवाओं से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है और एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति लंबे समय तक जीवित रह सकता है. यह बीमारी एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस से फैलती है. यह वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करता है. अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो एड्स हो सकता है.

एचआईवी का मिल गया तोड़

इस लाइलाज बीमारी को तोड़ने के लिए डॉ. आदि बार्गेल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने टाइप-बी वाइट ब्लड सेल्स का इस्तेमाल किया. ये कोशिकाएं हमारे शरीर में वायरस और खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करती हैं. ये वाइट ब्लड सेल्स अस्थि मज्जा में बनती हैं. परिपक्व होने पर, वे रक्त के माध्यम से शरीर के अंगों तक पहुँचते हैं. वैज्ञानिकों ने इन बी कोशिकाओं के जीन को संशोधित करके एचआईवी वायरस के कुछ हिस्सों से संपर्क किया. इससे उनमें कुछ बदलाव आया. उसके बाद इन तैयार बी कोशिकाओं का एचआईवी वायरस से मुकाबला किया गया, तो वायरस टूटता हुआ दिखाई दिया.

डॉ. बरजेल ने कहा कि लैब में जिन मॉडलों पर इस उपचार का परीक्षण किया गया, उन्होंने बहुत अच्छे परिणाम दिखाए. उनके शरीर में एंटीबॉडी की संख्या भी काफी बढ़ गई और एचआईवी वायरस को खत्म करने में सफल रहे. यह शोध नेचर मैगजीन में प्रकाशित हुआ है. मेडिकल जर्नल ने अपने निष्कर्ष में इन एंटीबॉडी को सुरक्षित, शक्तिशाली और काम करने योग्य बताया है. कहा जाता है कि यह न सिर्फ संक्रामक रोगों बल्कि कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज में भी कारगर हो सकता है.



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