मकर संक्रांति स्पेशल- क्यों उड़ाई जाती है पंतग और क्या है इसके पीछे का इतिहास

मकर संक्रांति पर्व पर देश के कई शहरों में पतंग उड़ाने की भी परंपरा है इसलिए इस त्योहार को पतंग उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। ऐसे में हम आपको बताते है कि मकर संक्रांति पर पतंग अखिर क्यों उड़ाई जाती है और इसका क्या महत्व है।

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मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।  वही भारत के प्रमुख त्योहारों में मकर संक्रांति का त्योहार हर साल जनवरी के महीने में मनाया जाता है। वैसे तो अन्य त्योहारों की भांति मकर संक्रांति के अवसर पर भी कुछ परंपराओं का पालन किया जाता है लेकिन इन परंपराओं और मान्यताओं के बीच एक चीज जो पूरे त्योहार में आकर्षण का केन्द्र बनकर सामने आती है वह है पतंग उड़ाना। वही मकर सक्रांति पर लोग इस दिन पतंग उड़ाने को बहुत शुभ मानते है। ऐसे में हम आपको बताते है कि मकर संक्रांति पर पतंग अखिर क्यों उड़ाई जाती है और इसका क्या महत्व है। 

मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का महत्व

मकर सक्रांति का त्योहार बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। कहा जाता है कि इस त्योहार से शुभ कार्य शुरू होते हैं क्योंकि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति में, शुभता की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए पतंग का उपयोग किया जाता है। वही पतंग शुभता, स्वतंत्रता और खुशी का प्रतीक मानी जाती है। यही नहीं पतंग स्वतंत्रता दिवस पर भी उड़ाई जाती है। इसी तरह घर में शुभता के आगमन की खुशी में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की प्रथा है।

पहली बार पतंग कब और किसने उड़ाई 


जैसा कि हम जानते हैं कि पतंगबाजी का खेल भारत में बहुत पुराना और बहुत प्रसिद्ध है। भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर पतंग उड़ाई जाती है। भारत अपनी विविध संस्कृति के लिए जाना जाता है। इस दिन लोग पूरे उत्साह के साथ कलरफुल पतंग उड़ाते हैं और आकाश भी पतंगों से भर जाता है। साथ ही आपको बता दें कि भारत में हर साल इंटरनेशनल पतंग  फेस्टिवल भी मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि पहली बार पतंग आई कहां से और किसने इसे सबसे पहले उड़ाया था। 

पतंगों का इतिहास लगभग 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है लेकिन पतंगों की उत्पत्ति या इतिहास के बारे में कोई लिखित में प्रमाण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले पतंग का आविष्कार चीन में किया गया था और शानडोंग जो कि पूर्वी चीन का प्रांत था को पतंग का घर कहा जाता है। वही एक प्राचीन कथा से पता चलता है कि एक चीनी किसान अपनी टोपी को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसे एक रस्सी से बांध कर रखते थे और इसी अवधारणा से पतंग की शुरूआत हुई थी। इसके साथ ही एक और मान्यता के अनुसार 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चीन पण्डित मोझी  और लू बान ने पतंग का आविष्कार किया था। उस समय पतंगों को बनाने के लिए बांस या रेशम के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था।

ऐसा कहा जाता है कि 549 ईस्वी से कागज की पतंगों को उड़ाया जा रहा था क्योंकि उस समय कागज की पतंग को बचाव कार्यों के लिए एक संदेश के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। प्राचीन और मध्यकालीन चीनी स्रोतों ने वर्णन किया है कि पतंगों का उपयोग मापने, हवा का परीक्षण करने, संकेतों को भेजने और सैन्य अभियानों को संचार करने के लिए किया जाता था। सबसे पहली चीनी पतंग फ्लैट यानी चपटी और आयत के आकार की बनाई जाती  थी। फिर बाद में  उन पतंगों को पौराणिक रूपों और देवकथा संबंधी चित्रों से सजाया जाने लगा था और  वही कुछ में पंतगों में स्ट्रिंग्स को भी जोड़ा जाता था ताकि उड़ते समय पंतग में से संगीत सुनाई दे।

भारत में पतंग उड़ाने की शुरुआत कब और कैसे हुई

ज्यादातर लोगों का मानना ​​है कि चीनी लोग फा हिएन और ह्वेन त्सांग भारत में पतंग लाते थे। यह टिशू पेपर और बांस से बना था। लगभग सभी पतंगों का आकार एक जैसा ही होता है। इसके साथ ही पतंगबाजी का खेल भारत में काफी लोकप्रिय है। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में और साल के कुछ महीनों में कुछ स्पेशल त्योहार  या पतंगबाजी कान्टेस्ट  का आयोजन किया जाने लगा।

इसलिए उड़ाते हैं मकर संक्रांति पर पतंग 


मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण का होता है। इस कारण इस समय सूर्य की किरणें व्यक्ति के लिए औषधि का काम करती हैं। वही सर्दी के मौसम में व्यक्ति के शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही त्वचा में भी रुखापन आने लगता है। ऐसे में छत पर खड़े होकर पतंग उड़ाने से इन समस्याओं से राहत मिलती है। इसके अलावा पतंग उड़ाते समय व्यक्ति का शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है जिससे उसे सर्दी से जुड़ी कई शारीरिक समस्याओं से निजात मिलने के साथ विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। बता दें विटामिन डी शरीर के लिए बेहद आवश्यक है जो शरीर के लिए जीवनदायिनी शक्ति की तरह काम करता है। इसके साथ ही मकर संक्रांति के पर्व पर पतंग उड़ाना सेहत के लिए विशेष रूप से लाभदायी माना गया है।  पतंग उड़ाने के पीछे कोई  भी धार्मिक पक्ष नहीं है लेकिन फिर भी हेल्थ को देखते हुए इस दिन पतंग उड़ाना अच्छा माना जाता है। घर की छतों पर जब लोग पतंग उड़ाते हैं तो सूरज की किरणें एक औषधि की तरह काम करती हैं। शायद इसलिए मकर संक्रांति के दिन को पतंग उड़ाने का दिन भी कहा जाता है।

पतंग उड़ाते समय इन बातों का रखें खास ध्यान

यूं तो पतंगें अपने साथ खुशी का माहौल लेकर आती हैं लेकिन अगर कुछ बातों का ध्यान न रखा जाए तो खुशी को गम में बदलने में पल भर का भी समय नहीं आता। मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाते समय इन बातों का रखें विशेष रूप से ख्याल।

1. सबसे पहले पतंग उड़ाते समय एक सुरक्षित जगह चुनें और अगर आप छत पर पतंग उड़ा रहे हैं, तो उसकी मुंडेर का ध्यान रखें।

 2. वही चाइना के बने मांझे का प्रयोग न करें और न ही मांझा की धार को तेज करने के लिए बल्ब का चूरा व सरस आदि का प्रयोग करें। ऐसा करना आपके लिए जानलेवा हो सकता है। 

3. पतंग उड़ाने से पहले आप सनस्क्रीन व गॉगल्स का प्रयोग करें क्योंकि आंखों या त्वचा पर पड़ने वाली सूरज की सीधी किरणें आपके लिए हानिकारक हो सकती हैं।

4. ध्यान रखें कि पतंग की डोर से आपकी उंगुली को कोई भी  नुकसान न पहुंचे। इसके लिए पतंग उड़ाते समय हाथों में दस्ताने पहनें।

5. पतंग उड़ाते समय अगर वह फट जाए तो उसे तुरंत कूड़े में फेंके।

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