महिलाओं के साथ हुई क्रूरता की पूरी सच्चाई, हर लड़ाई का आधार बनीं महिलाएं

अफगानिस्तान की महिलाओं का आखिर क्या कसूर है जो उन्हें सरेआम बेंचा जा रहा है, खरीदा जा रहा है, उनको गुलाम बनाने के साथ उनपर अत्यधिक अत्याचार हो रहें है..

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अफगानिस्तान की महिलाओं का आखिर क्या कसूर है जो उन्हें सरेआम बेंचा जा रहा है, खरीदा जा रहा है, उनको गुलाम बनाने के साथ उनपर अत्यधिक अत्याचार हो रहें है.. लड़ाई तालिबान और अफगानिस्तान के बिच सत्ता की थी लेकिन इसमें नीलाम आखिर महिलाओं को ही क्यों किया जा रहा है. क्या इन महिलाओ पर अत्याचार करने वाला किसी माँ के कोख से पैदा नहीं लिया होगा या उसे अल्लाह ने आसमान से ऐसे ही धरती पर फेंक दिया होगा या उसको यह कौन सी तालीम दी गई है की सत्ता पाने के बाद भी इन अफगानी महिलाओं के साथ हैवानियत की सारी हदें पार की जा रही है जिनका मेरे नजर में सिर्फ ये कसूर लगता है की एक तो ये अफगानी है , दूसरा ये महिला हैं और तीसरा इन तालिबानी कटटर मुजाहिदीनों के नजर ये भोग विलास करने की बढ़िया साधन है. पर चाहे जो भो इंसानियत की दुहाई देने वाले ये तालिबानी और शरिया कानून का पैरोकारी करने वालो का असल में ये रूप है ये तो दुनिया ने अब देख ही लिया है.


युद्ध चाहे हज़ार साल पहले हुआ हो या आज के दौर में एक बात हमेशा कॉमन रही है और वो यह है कि औरतें हमेशा जीत की ट्राफी या हार की याद रही हैं, महिलाओं  को हमेशा इनाम के तौर पर लिया गया है. जो अमेरिका आज अफगानिस्तान को महिला सुरक्षा का पाठ पड़ा रहा है उसी अमेरिका ने कभी वियतनाम में महिलाओं के साथ वो क्रूरता की हदें पार किया था और हैवानियत का वो नंगा नाच किया था जिसे आप और हमसब जानकर हैरान हो जाते है . यह बात उस दौर की है जब वियतनाम युद्ध हो रहा था. इस युद्ध के दौरान  अमेरिकी सैनिकों ने वहां की कम उम्र की लड़कियों को हार्मोन्स के इंजेक्शंस दिए गए थे जिससे वो थोड़ी भर जाएं ,जिसके बाद अमेरिकन सोल्डिएर्स अपने यौन भूख की पूर्ति कर सके. इसी वजह से उस वक़्त 50000 बच्चे हुए थे वियतनाम अमेरिकन,  जिसका कारण सिर्फ रेप था. उस वक़्त महिलाओं के पास सिर्फ दो ऑप्शन थे या तो रेप करवाओ या मार दी जाओगी। जिसे आज सब लोग भूल गए हैं.

सेकंड वर्ल्ड वॉर के टाइम पर सोवियत (रूस) जर्मन महिलाओं का रेप सिर्फ सेक्स के लिए नहीं किया था उसके पीछे के वजह थी जर्मन पुरुषों का गुरुर तोड़ना.  जिसकी वजह से एक एक महिला का 10 10 आदमियों ने रेप किया था घर से निकाल कर, जिसमे एक सैनिक की ड्यूटी थी कि वो चिल्ला कर,गालिया देकर  इन पुरुषों का जोश बढ़ाए , ताकि वो और भी ज्यादा वैश्यी तरीके से रेप कर सकें


19 जनवरी साल 1990 का वो काला दिन था जब कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को उनके घरों से निकला गया उनकी महिलाओं का सामूहिक रेप किया गया लाऊड स्पीकर पर आवाजे चल रही थी काफिरों को यहाँ से निकालो और निजामें मुस्तफा चलेगा, हमें कश्मीर चाहिए पंडित महिलाओ के साथ ना कि पंडित पुरुषों के साथ.......  उस दौर के राज्यपाल जगमोहन जी ने बाद में फ़ौज बुलाई थी, फ़ौज आई भी लेकिन 30 साल बाद आज भी वो वक़्त याद करके रो पड़ते हैं.  


साल 1919 के आईरिस वॉर में ब्रिटिश आर्मी आईरिस महिलाओं के सर के बाल मुंड़वाती थी, इसके पीछे का मकसद था की जब वे महिलाये बहार निकले तो वो गुलाम नज़र आये, फिर कोई भी व्यक्ति उन्हें कैसे भी छू सकता था, रेप कर सकता था, अक्सर उन्हें उठा ले जाया करवाते थे फिर जब तक चाहे रखा उसके बाद छोड़ दिया, पुरुषों से मजदूरी करवाना और महिलाओ से रेप करना यही सच्चाई थी 1919 के आईरिस वॉर की.


आईएसआईएस के लड़ाके जिन इलाको पर कबब्जा करते थे वहां की औरतों के नाम कटोरों पर लिखते थे, जिसके बाद सारे लड़ाके आके उन कटोरो में से एक चुन लेते थे , उसपर जिसका भी नाम होता था वे उस महिला को अपने साथ ले जा सकते थे, और जब तक चाहे, जैसे चाहे उसे उसे करे, मरे पीटे, चाहे खेत में बैल की तरह जाते। किसी को कोई फर्क नहीं था, और जब मन भर जाये तो लाकर वापस छोड़ जाते थे. गुजरात दंगो में भी महिलाओ को आधार बनाकर बदला लिया था. 58 निर्दोष कारसेवकों का ट्रैन में जिन्दा जला दिया गया था उसके बाद जब दूसरे पक्ष ने बदला लिया तो कहा जाता है करीब 250 महिलाओ का रेप हुआ उसके बाद उन्हें मार दिया गया 

 

पाकिस्तान से जब बंगदेश को अलग किया गया तो उस युद्ध में करीब 2 लाख महिलाये थी जिनका रेप हुआ था, जिसमें  से ज्यादा तर महिलाये ऐसी थी जो मुस्लमान थी और उनका रेप करने वाले भी पकिस्तानि थे , इस युद्ध में 20 से 30 लाख लोग मर दिए गए थे, और एक करोड़ भारत  में शरणार्थी बन गए थे , ये युद्ध तब ख़त्म हुआ था जब भारत ने पाकिस्तान की फ़ौज को सर्रेंडर करवा दिया गया था.

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