मुगलों को 17 बार धूल चटाने वाले 'अहोम योद्धाओं के बारे में कितना जानते हैं आप?

17 बार मुगलों को हराने वाले इन योद्धाओं के बारे में शायद ही जानते होंगे आप.

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इतिहास के पन्नों में कई ऐसे राजा-महाराजों को जिक्र किया गया है जिनके बारे में ज्ञान लेते हुए हम बढ़े हुए हैं. इस लिस्ट में राणा सांगा और महाराणा प्राप्त जैसे वीरों का नाम शामिल है. लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे योद्धाओं के बारे में जिन्होंने मुगलों के पसीने छुड़ाने में किसी भी चीज की कमी नहीं रखी थी. वो है असम के अहोम योद्धा. असम को प्राचीन काल में प्राग्यज्योतियशपुरा और कामरुप के तौर पर जाना जाता था. पहले उसकी राजधानी आधुनिक गुवाहाटी हुआ करती थी. 

अहोम ने मुगलों को एक बार नहीं बल्कि कई बार धूल चटाई है. जानकार हैरानी होगी कि दोनों के बीच डेढ़ दर्जन से ज्यादा बार युद्ध हुए हैं. उनमें से ज्यादातर में मुगलों को या तो खदेड़ गया या फिर जीतकर भी उनका प्रभाव कम ही देखने को मिला. असम में आज भी 17वीं सदी के अहोम योद्धा लाचित बरपुखान को याद किया जाता है. मुगलों के विस्तारवादी अभियान पर ब्रेक लगाने का काम उन्होंने किया था. अगस्त 1667 में उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे मुगलों की सैनिक चौकी पर हमला किया था. उन्होंने आगे बढ़ते हुए मुगल कमांडर सैयद फिरोज खान के अलावा कई मुगल फौजियों को बंदी बनाया था.

इतिहास की किताबों में होना चाहिए इस युद्ध का जिक्र

ऐसे में मुगल कहा शांत बैठने वाले थे. मुगालों ने बड़ी संख्या में फौज अहोम के खिलाफ युद्ध के लिए भेज दी. सैकड़ों नौकाओं में सैनिकों ने नदी को पार किया. इस बार बिना रिस्क लेते हुए मुगलों ने अपनी काफी मजबूत सेना को भेजा था. लेकिन अब की बार जो होने वाला था वो इतिहास की हर उस किताब में छापा होना चाहिए जहां नेवल वॉर या फिर जलीय युद्ध का जिक्र होता है. लाचित के नेतृत्व में मौजूद अहोम सिर्फ 7 नौकाओ में आए. लेकिन जब आक्रमण की बात आई तो मुगलों को तितर-बितर करने में अहोम सैनिक सफल रहे. मुगलों को घुटने टेकने पड़े. 

ऐसे हुई कूच वंश की शुरुआत

इस युद्ध से पहले ही मुगलों और अहोम के संघर्ष की शुरुआत हो चुकी थी. दरअसल 1615 में मुगलों ने अबू बूकर के नेतृत्व में एक सेना को भेजा था, जिसे अहोम ने शिकस्त दी थी. भले ही शुरुआत में अहोम को काफी नुकसान ही क्यों न झेलना पड़ा था. लेकिन आखिर में जीत ही उन्होंने हासिल की. 1515 में कूच-बिहार में कूच वंश की नींव पड़ी थी. इस राजवंश के पहले राजा विश्व सिंह बने थे. बाद में उनके बेटे नारा नारायण देवे की मौत के बाद साम्राज्य दो भागों में बांट गया था, जिसके चलते पूर्वी भाग कूच हाजो उनके भतीजे रघुदेव को मिला और पश्चिमी भाग बेटे लक्ष्मी नारायण पदासीन को हासिल हुआ.

इस वजह से मुगलों की पड़ी बुरी नजर

उपजाऊ जमीन, जानवरों, खासकर हाथियों के चलते कामरुप क्षेत्र समृद्ध था. इसी वजह के चलते मुगलों की इस पर बुरी नजर पड़ी होगी. वही, अहोम ने एक पहाड़ी सरदार को अपने यहां शरण देने का काम किया. इससे मुगल नाराज थे.  जिस वक्त शाहजहां बीमार हुए उस वक्त उसके बेटे आपस में ही सत्ता के लालच में डूबकर लड़ रहे थे. इसी का फायदा उठाते हुए अहोम राजा जयध्वज सिंद्या ने मुगलों को असल से खदेड़ कर रख दिया.  गुवाहाटी तक अपना साम्राज्य फिर से स्थापित उन्होंने किया. लेकिन असली परेशानी उस वक्त आई जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने उस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए बंगाल के सूबेदार मीर जुमला को भेजा था. 

हार मिलने पर अहोम को गवाना पड़ी ये अमूल्य चीज

कहते ही न सत्ता हमेशा ताकतवर इंसान के हाथों में ही होती है. इसको सही साबित करने के लिए मार्च 1662 में मीर जुमला के नेतृत्व में मुगलों को बड़ी सफलता हाथ लगी थी. अहोम के अंदर आंतरिक परेशानी के चलते उसने समधारा, गढ़गांव और सिमूलगढ़ पर कब्जा जमा लिया था. लेकिन ठंड आते ही मुगलों को वहां परेशानी होने लगी और उनका दिल्ली से पूरी तरह संपर्क टूट गया. ऐसे में मुगल वहां से भाग निकले. बारिश का मौसम जैसे ही आया मुगलों और अहोम के बीच फिर युद्ध हुआ लेकिन अहोम को हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं मुगलों को कई क्षेत्र और 1 लाख रुपये देने पड़े. उस वक्त ये रकम काफी ज्यादा थी. जयध्वज को यहां तक की अपनी बेटी और भतीजी तक को मुगल हरम में भेजना पड़ गया था.

जयध्वज के बेटे ने लिया पिता के अपमान का बदला

ये अपमान जयध्वज को सहन नहीं हुआ और उनकी मौत हो गई. प्रजा की रक्षा करने के लिए उन्हें मजबूरी में विदेशी आक्रांताओं के साथ संधि को करना पड़ा. जयध्वज के पुत्र चक्रध्वज ने इस अपनाम का बदला लिया और मुगलों को एक-एक करके खदेड़ना शुरु कर दिया. वो मुगलों को दौड़ते-दौड़ते मानस नदी तक ले आए और जितने भी अहोम सैनिकों को मीर ने बंदी बनाया था, उन्हें छूड़ा लिया गया. साथ ही खोई हुई जमीन तक वापस ले ली गई. बाद में जाकर मानस नदी को ही सीमा बनाया गया. इसके बाद ही जयध्वज ने कहा था कि अब वो ठीक से भोजन कर सकते हैं.

जलयुद्ध की रणनीति अपनाई

अब अपने अपमान के बाद औरंगजेब ने एक बहुत बड़ी सेना असम भेजी लेकिन ऐतिहासिक सरायघाट के युद्ध में लाचित बोरपुखान के हाथों जबरदस्त हार झेलनी पड़ी. हमने इसी युद्धी की चर्चा की है, जिसके बाद लाचित मुगलों के खिलाफ अभियान के नए नायक बनकर उभरे. 50 हजार से अधिक संख्या में आई मुगल फौज को मात देने के लिए उन्होंने जलयुद्ध की शानदार रणनीति अपनाई. ब्रह्मपुत्र नदी और नजदीकी पहाड़ी क्षेत्र को अपनी मजबूती बनाकर लाचित ने मुगलों को मात दी. उन्हें इस बात का पता था कि पानी में मुगल सेना को हराया जा सकता है.

इसीलिए मनाया जाता है लाचित दिवस 

नदी में मुगलों पर आगे नहीं पीछे  से भी हमला किया गया. उनका कमांडर मुन्नवर खान मारा गया. वही, असम सरकार ने साल 2000 में लाचित बोरपुखान अवॉर्ड की शुरुआत की. नेशनल डिफेंस अकादमी से पास हुए प्रतिभाओं को इस सम्मान से नवाजा जाता है. आज भी उनकी मूर्तियां असम में लगी हुई है. हमें भी अहोम योद्धाओं को याद करना चाहिए. 24 नवबंर को लाचित दिवस के तौर पर ही मनाया जाता है.

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