आइए जानें केदारनाथ मंदिर की अनोखी कहानी, जब भूमि में समा गए थे शिव

बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है. यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे.

केदारनाथ मंदिर
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आस्था धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। सिद्धांत है यहां पर भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए थे।

बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च धार्मिक धाम की अनोखी कहानी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष इयाद बफ़ेलो का पिछड़ा भाग है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे।

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो इस युद्ध के रक्त संघ को देखकर भगवान शंकर पांडवों से रुष्ट हो गये थे। वहीं पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिव जी के दर्शन करना चाहते थे। अपने पाप का प्राश्चित करने के लिए पांडव कैलाश पर्वत पर महादेव के समीप गए लेकिन शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान हो गए। पांडवों ने मणि नहीं खोई और शिव की खोज में केदार तक पहुंच गए।

भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य समुद्र में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था कि ये शिवजी ही हैं। भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो खंडों पर अपने पैरों को फैलाया। सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बल इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणीय पृथिवी का भाग पकड़ लिया।

भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प कर प्रसन्न हुए। उन्होंने दर्शनार्थी पांडवों की हत्या के पाप मुक्त कर दिया। पांडवों ने भगवान से प्रार्थना की की वे इसी धड़कते रूप में यहां रहते हैं। शंकर भगवान ने तथास्तु कहा और केदार ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए यहां चले गए।

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