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राजनीतिक शब्दकोश में सबसे प्रसिद्ध मुहावरा यह है कि न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और न ही कोई स्थायी मित्र... कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता कि कौन सा नेता और पार्टी कब किस दल के साथ जाएगी. अगर राजनीति इतनी अप्रत्याशित है, तो उसका तरीका हमेशा एक जैसा क्यों होना चाहिए?
यह सवाल इसलिए है क्योंकि यही महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक संकट का असली केंद्र है. मंत्री एकनाथ शिंदे ने विधायकों की विशाल फौज के साथ शिवसेना के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका है. शिंदे ने अपने दांव से उद्धव ठाकरे की बोरी-बिस्तर मुख्यमंत्री आवास से बंधवाई है। शिंदे और उनके समर्थकों का कहना है कि वह शिवसैनिक हैं, बालासाहेब ठाकरे के अनुयायी हैं और शिवसेना अब पहले जैसी नहीं रही.
कैसी थी पुरानी शिवसेना?
तो बालासाहेब ठाकरे के साथ शिवसेना कैसी थी? क्या था उस शिवसेना में जो अब उद्धव राज के अधीन नहीं है. जबकि उद्धव कह रहे हैं कि वर्तमान शिवसेना भी बालासाहेब की है और उनके विचारों से प्रेरित है जो हिंदुत्व से समझौता नहीं करते.




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