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भारत-चीन सीमा विवाद को रोकने के लिए पैंगोंग झील क्षेत्र घोषित हुआ 'No Man's Land'

अगर ऐसा करने तनाव में कमी होती है या ये फैसला कारगर सिद्ध होता है तो भारत उन टॉप्स को छोड़ देगा जिसपर उसने अगस्त के अंत में कब्ज़ा किया था जो जगह झील के दक्षिण में स्थित है।

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By Anshita Shrivastav | खबरें - 12 November 2020

पिछले कई महीनों से इतने प्रयासों के बाद भी भारत-चीन का सीमा विवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है। इस तनाव से निपटने के लिए कई बार बातचीत की गई सैनिकों में झड़प हुई। हमारे देश के सैनिक शहीद हुए। फिर भारत के सैनिकों ने बहादुरी के साथ ब्लैकटॉप हेमलेट जैसी जगहों पर कब्ज़ा भी किया। बार -बार चीन ऊपरी तौर पर बात चीत का रास्ता रखता रहा लेकिन अंदुरुनी तौर पर साज़िशे भी रचता रहा। लेकिन कोई हल नहीं निकला तो अब ऐसा माना जा रहा है कि विवाद को खत्म करने का एक मात्र रास्ता हो सकता है और वो ये है कि पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर विवादास्पद ‘फिंगर’ क्षेत्र भारतीय या चीनी सैनिकों के साथ अस्थायी रूप से नो मेन लैंड में बदल सकता है, जो पिछले 6 महीनें से चल रहे तनाव को कम करने में सफलता प्रदान कर सकता है।

सूत्रों के मुताबिक डी-एस्केलेशन को एक चरणबद्ध तरीके से सुनिश्चित करने के लिए जो प्रस्ताव रखें गए थे उनमे से सबसे अच्छा उपाय ये हो सकता है कि  फिंगर 4 से फिंगर 8 तक के क्षेत्र को कुछ समय के लिए नो पेट्रोलिंग जोन में बदल दिया जाए।

चीन की सेना लगभग 8 किमी तक आ गई थी जो  फिंगर 8 और 4 के बीच की दूरी के नज़दीक था। जो पूरी तरह से नियमों का उलंघन है और वहां पर चीनी सेना द्वारा टेंट आदि भी लगाए गए। अब दोनों देशों की सेना  फ़िंगर 4 और फ़िंगर 8 के क्षेत्र के बीच में पेट्रोलिंग करेंगीं, जिस कारण से अक्सर फेसऑफ़ और झड़पें हुआ करती थीं।


14000 फ़ीट से ज्यादा गहराई की लेक के उत्तरी किनारे को 8 फिंगर्स  में बांटा गया है। भारत फिंगर 8 पर एलएसी का दावा करता है और फिंगर 4 तक अपनी मजबूती बना रहा है, लेकिन  इसके दूसरी तरफ चीनी सेना भी फिंगर 4 पर टेंट लगा रही हैं और फिंगर 5 और 8 के बीच डेरे जमा रही है यानि धीरे-धीरे विस्तार करके अपने क्षेत्र में मिलाने का प्रयास कर रही है।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि इस क्षेत्र को नो पैट्रोलिंग जोन में बनाना तीन स्टेप के विघटन रोडमैप का ही हिस्सा है और इसमें जो फेसऑफ साइट्स मौजूद हैं उनसे पीछे हटने से पहले उत्तरी बैंक में सैनिकों का कम होना भी शामिल है। अगर ऐसा करने  तनाव में कमी होती है या ये फैसला कारगर सिद्ध होता है तो भारत उन टॉप्स को छोड़ देगा जिसपर उसने अगस्त के अंत में कब्ज़ा किया था जो जगह झील के दक्षिण में स्थित है।

बता दें इन प्रस्तावों पर चर्चा पिछली दो सैन्य कमांडरों की बैठकों में की गई। मई के शुरू हुए इस तनाव को कम करने के लिए अब तक कोर कमांडर स्तर पर आठ दौर की बैठकें की जा चुकी हैं। उस क्षेत्र का तापमान अब - 20-25 डिग्री से भी कम होने की संभावना है। ऐसे में सर्दियों में सैनिकों की तैनाती को कम करना दोनों ही पक्षों के लिए चुनौती है।


ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि इस तनाव को काम करने के लिए कोई प्रस्ताव दिया गया है। 15 जून को गालवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद एक  विघटन हुआ था, उस झड़प में एक कमांडिंग ऑफिसर सहित 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे। वो प्रस्ताव सफल नहीं हो सका क्योंकि चीन पैंगोंग झील के फिंगर 4 क्षेत्र को छोड़ने के लिए राज़ी नहीं हो रहा था।

उसके बाद जुलाई में फिर मामला सुलझने के कुछ आसार दिखाई दिए। बाद में चीनी फिंगर 4 से फिंगर 5 तक चले गए, उसके बाद भारतीय सैनिकों ने  फिंगर 3 से अपने कदम पीछे लिए लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिल सकी। इन हालातों को देखते हुए जनरल बिपिन रावत ने साफ़ तौर पर कहा भारतीय किसी भी तरह की जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करेंगें।



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