भारत में नहीं है वाघा बॉर्डर का नामों निशान! सामने आए चौंकाने वाले खुलासे

जानिए क्या है अटारी बॉर्डर का इतिहास, जिसके बारे में यकीनन ये बातें नहीं जानते होंगे आप.

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वाघा बॉर्डर हम में से कई सारे लोग घूमने गए होंगे. वहां भारत और पाकिस्तान के आर्मी अफसर को देखकर एक अलग ही अनुभव होता है. लेकिन यदि हम आपसे कहे कि भारत के अमृतसर और पाकिस्तान के लाहौर के बीच जोग्रैंड ट्रंक रोड़ पर मौजूद भारत-पाक सीमा पर स्थित बॉर्डर को भारत के लोग वाघा बॉर्डर बोलते हैं वो बिल्कुल गलत है. ऐसा इसीलिए क्योंकि भारत में वाद्या नाम की तो कोई जगह ही मौजूद नहीं है. दरअसल इस बॉर्डर को अटारी के नाम से जाना जाता है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. तो चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं अटारी बॉर्डर के बारे में यहां.

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भारत में नहीं आता है वाद्या!

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि अटारी-वाघा बॉर्डर पर जहां लोग रिट्रीट सेरेमनी देखने रोज आते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि वहां पर 1947 तक कुछ भी ऐसा मौजूद नहीं था. बल्कि 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को जब देश का विभाजन हुआ था तब भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान के तौर पर अलग हो गया और लकीर खींच दी गई. फिर क्या था अटारी गांव बना भारत का हिस्सा और उससे सटा गांव वाद्या पाकिस्तान का हिस्सा बनाकर सामने आया. यहां से गुजरने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड पर निशानदेही की गई है. पाकिस्तान की ओर से बांस का पोल लगा दिया गया, वही भारत ने अपना झंडा लगा दिया. यहां पर भारत की ओर से एक किनारे पर छोटा सा एक गेट लगाया गया और दोनों देशों के झंड़े एक बड़े खंभे पर लगा दिए गए. 

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जानिए किस शख्स के नाम पर रखा गया है अटारी बॉर्डर नाम

इन सबके बावूजद अटारी बॉर्डर को वाघा बॉर्डर के नाम से कई लोग जानतें और लिखते हैं. इसी दुविधा को दूर करने के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी के चलते पंजाब सरकार ने 2007 में सरकारी नोटिफिकेशन जारी करके आधिकारिक तौर पर इसे अटारी बॉर्डर नाम दिया था.  क्या आपको पता है कि अटारी गांव का नाम कैसे रखा गया था? अटारी के महाराजा रंजीत सिंह की सिक्ख वाहिनी के विख्यात सेनापति शाम सिंह अटारीवाल के नाम से इस गांव को ये नाम दिया गया था. इसीलिए पंजाब सरकार की ओर से अटारवीला के सम्मान में इस बॉर्डर को अटारी बॉर्डर नाम दिया गया, लेकिन ये आधिकारिक नाम सिर्फ सरकारी दस्तावेजों तक ही सिमट कर रह गए हैं और आज भी लोग इसे वाद्या बॉर्डर कहते हैं.

आइए अब बताते हैं शाम सिंह अटारीवाला से जुड़ी खास बातों के बारे में यहां. 1790 के दशक में भारत के पंजाब के अटारी शहर में जाने-माने जाट सिख किसान के घर हुआ था उनका जन्म. महाराजा रणजीत सिंह ने उनके गुणों और संघर्षों के बारे में जानते हुए उन्हें 5 हजार घुड़सवारों का जत्थेदार बना दिया था. इसके अलावा उन्होंने कई सारे अभियनों में भी हिस्सा लिया था, खासतौर पर मुल्तान का अभियान, कश्मीर का अभियान और सीमांत प्रांत का अभियान आदि.

महाराजा रणजीत सिंह के दो सेनानायक थे. एक हरि सिंह और दूसरे का नाम शाम सिंह अटारी वाला था. शाम सिंह के पांचवी पीढ़ी के हरप्रीत सिंह ने बताया कि शाम सिंह की बेटी व महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र और कुंवर खड़क सिंह पुत्र नौनिहाल सिंह की शादी इतिहास प्रसिद्ध है.  शाम सिंह अटारवीला एक ऐसे योद्धा थे जिसकी भारतीय ही नहीं बल्कि अंग्रेज भी तारीफ करते थे.  कहा जाता है कि महाराजा का विश्वासपात्र और कुशल सैन्य क्षमता से भरपूर शाम सिंह अटारी जंग के मैदान में अग्रिम पंक्ति में रहता तो वह सफर रेशमी कपड़े पहनते और सफेद घोड़े की सवारी करते थे. 

इसके अलावा हम आपको बता दें कि उनकी बेटी की शादी राजकुमार नौ निहाल सिंह से हुई थी. उन्होंने महाराजा दलीप सिंह के लिए काउंसिल ऑफ रीजेंसी में काम किया था. वही, उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी माई दासी ने उनकी दुल्हन की पोशाक में सती किया था.


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