भारत और चीन के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रास्ते पूरी तरह से अलग हैं. हालाँकि दोनों देशों की सभ्यताओं की विशेषताओं को पूरी तरह से समझा नहीं गया था. इस मामले में विद्वान भी भ्रमित हो गए.
शक्तियों की तुलना
अभी एशिया की इन दो शक्तियों की तुलना की जा रही है. दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा के कई कारण हैं. यहां भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चीन के खिलाफ सत्ता के असंतुलन को कैसे ठीक किया जाए वहीं दूसरी ओर चीन भी इसी समस्या का सामना कर रहा है. इसने दुनिया की महाशक्ति अमेरिका और खुद के बीच की खाई को तेजी से पलट दिया है.
भारत कैसे बनेगा महाशक्ति
भारत इतिहास में इस समस्या का समाधान ढूंढ सकता है. प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम मैकनील की एक महान पुस्तक 'द राइज ऑफ द वेस्ट' है. उसमें बताया गया है कि वास्तव में शक्ति क्या है? विलियम लिखते हैं कि ताकत बढ़ाने के दो तरीके हैं. एक है अपने से छोटे शक्ति केंद्र को निगलना और दूसरा है विरोधी शक्ति केंद्र को भड़काना. यह पूरे मानव इतिहास में होता रहा है.
अब अगर भारत चाहता है कि दूसरी महाशक्ति उसे निगल न जाए और वह खुद एक शक्ति केंद्र बन जाए, तो इसके लिए उसके पास क्या रास्ता होना चाहिए? इसका जवाब विलियम मैकनील के पास भी है. उन्होंने बताया है कि सत्ता के केंद्र कैसे बदलते हैं और शक्ति संतुलन कैसे बनाए रखा जाता है. तो उनका सूत्र यह है कि जो आखिरी सबसे कुशल शक्ति थी, उससे सबक ले और आगे बढ़े.
रोमनों ने यूनानियों से सीखा. अरबों ने पारसियों से, मध्य एशियाई ने भारतीयों से सीखकर प्रगति की. इसी तरह, पश्चिम में पुनर्जागरण ग्रीक ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हुआ था जिसे अरबों ने संरक्षित किया था. हमने अपने समय में जापान का उदाहरण देखा है. इस छोटे से देश ने पश्चिम की आधुनिक तकनीक को अपनाया और खुद को एक औद्योगिक महाशक्ति में बदल लिया. चीन अब यही कर रहा है.