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हिटलर के लालच देने पर भी नहीं डगमगाए मेजर ध्यानचंद के कदम, ऐसे दिया था मुंह तोड़ जवाब

आज मेजर ध्यानचंद की जयंती है। ऐसे में उन्हें याद करते हुए जानिए उन खास पलों से जुड़ी कुछ बातें जिसके चलते वो बने हॉकी के जादूगर।

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By Deepakshi | खेल - 03 December 2020

हमारे देश में धीरे-धीरे करके अब हॉकी की फैन फॉलोइंग बढ़ती ही जा रही है। लेकिन इस खेल को लोगों के दिलों में उतारने का बेहतरीन काम मेजर ध्यानचंद ने किया है। उन्हें हॉकी के जादूगर के नाम से भी जाना जाता है। उनके दीवानों की लिस्ट में क्रिकेट के महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन भी शामिल रहे। दोनों की मुलाकात 1935 में हुई थी। डॉन ब्रैडमैन ने ध्यानचंद के बारे में बात करते हुए एक बार कहा था कि वह इस तरह से गोल करते हैं  जैसे कि क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं। मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर इसीलिए भी कहा जाता था क्योंकि 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में उन्होंने भारत को तीन गोल्ड दिलाया था। आइए जानते हैं मेजर ध्यानचंद की 41वीं पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी खास बातों के बारे में यहां, जिसके चलते हर दिल में उनकी पहचान बनी है।

- 29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद का जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था।

- मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर हर साल मनाया जाता है।

- 16 साल की उम्र में वो भारतीय सेना का हिस्सा बने थे। इसके बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरु किया था।

- 1928 में एम्सटर्डम में ओलंपिक खेल हुए थे तो उसमें भारत की तरफ से उन्होंने अधिक गोल किए थे और वो ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी बने। इस टूर्नामेंट के अंदर उन्होंने 14 गोल किए थे।

- 1932 ओलंपिक फाइनल में भारत ने अमेरिका को 21-1 से मता दी थी। उसमें मेजर ध्यानचंद ने 8 गोल किए थे।

-  उन्होंने अपनी जिंदगी में कितनी मेहनत की है इस बात का अंदाज आप इस चीज से लगा सकते हैं कि उनकी मूर्ति वियना स्पोर्ट्स क्लब में लगाई गई है।

- 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया था और भारत को गोल्ड दिलवाया था।

- मेजर ध्यानचंद ऐसे पहले खिलाड़ी बने हैं जिनकी तस्वीर भारत सरकार ने डॉक टिकट के साथ जारी की है।

- मेजर ध्यानचंद ऐसे पहले खिलाड़ी रहे जिन्हें 1956 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।

- बर्लिन ओलिंपिक में मेजर ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर बुलाया था। उस वक्त हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी की फौज में एक बड़ा पद देने और अपने देश की तरफ से खेलने के लिए ऑफर किया था लेकिन ध्यानचंद ने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकारते हुए कहा था कि हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं उसके लिए आजीवन खेलूंगा।

- वो इतना शानदार गेम कैसे खेल लेते थे उसका पता लगाने के लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़कर जांचा गया था। ये चेक करने के लिए कही उनकी हॉकी में चुंबक तो नहीं।


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