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बिहार चुनाव से राजनीतिक दलों को मिली ये 5 बड़ी सीख, जानिए किन वजहों से जीती NDA

भाजपा के लिए भले ही गठबंधन एक अस्थायी रणनीति है लेकिन गैर-भाजपा दलों के लिए गठबंधन बहुत ज़रूरी एक तरह से लाइफ़-लाइन हैं।

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By Anshita Shrivastav | खबरें - 11 November 2020

अभी हाल ही बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे आए हैं। जिसमें एक बार फिर एनडीए की सरकार बनी है। जिसको देखकर कई लोगों का ये कहना है कि ये नीतीश की नहीं भाजपा की जीत हुई है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है या फिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है क्या कारण हैं या ये कैसे संभव हो सका। यहां डालते हैं एक नज़र उन अहम बिंदुओं पर जिनको ध्यान में रखकर ये चुनाव लड़ा गया था।

पहला कारक- अपने विरोधियों को हटाने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता एक बड़ा कारण है जो भाजपा की चुनावी राजनीति में एक बड़ा कारक है। पीएम मोदी की लोकप्रियता इस हद तक है कि वो एक ब्रांड बन चुके हैं। इसलिए एक ब्रांड की तरह, उन्हें किसी भी राज्य, किसी भी संदर्भ में और किसी भी प्रतियोगिता के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि यह भाजपा के लिए अच्छी खबर तो है, लेकिन ये पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों के लिए एक चिंता का विषय भी है जिसपर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।ऐसा इसलिए क्योंकि अगर पीएम मोदी फेल होते तो भाजपा की चुनावी राजनीति अचानक डगमगा जाती। 


दूसरा कारक- बिहार में हुए चुनाव ने गठबंधन के लाभ और तनाव दोनों पर ही प्रकाश डाला। भाजपा के लिए भले ही गठबंधन एक अस्थायी रणनीति है लेकिन गैर-भाजपा दलों के लिए गठबंधन बहुत ज़रूरी एक तरह से लाइफ़-लाइन हैं। बिहार में मतदाता नीतीश कुमार के भले ही ख़िलाफ़ चल रहे थे लेकिन फिर भी भाजपा ने नीतीश को चुना और गठबंधन बनाए रखा। अब नीतीश ने दिखा दिया है कि वह कहां खड़े हैं, और भाजपा और जदयू के बीच का संबंध अब देखना होगा।

तीसरा कारक- यह केवल सैद्धांतिक आवश्यकता या राजनीतिक गुण के रूप में गठबंधन के बारे में नहीं है बल्कि मुद्दा राज्यों को जीत है। “उत्तर और पूर्व के मध्य में बिहार क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। नीतीश को अगर पूरी तरह प्रभावहीन कर दिया जाता तो बीजेपी के पास हार का सीधा दावेदार एनडीए होता। ऐसा इसलिए क्योंकि 2017 में एमजीबी से नीतीश कुमार को भाजपा में शामिल करने पता चला है कि भाजपा सत्ता में होने के महत्व को समझती है।


चौथा कारक- एक सवाल जो पर्यवेक्षकों को परेशान कर रहा है वो यह है कि भाजपा अपनी हिंदुत्व विचारधारा को बनाए रखने की कोशिश कर रही है और साथ ही, चुनावी राजनीति की राज्य-विशिष्टता के अनुकूल भी है। अब तक, भाजपा पूरी तरह से तामझाम और मुद्दों को अलग करने में सक्षम नहीं रही है। इसलिए भाजपा अपनी इच्छा को तभी पूरा कर सकती है, जब वह देश के ज़्यादातर क्षेत्रों पर अपने हिंदू भारत के विचार को व्यापक कर सकती है।

पांचवां कारक- फिर से बिहार में एनडीए की जीत या हार के बारे में सोचे बिना, राज्य में चुनाव और पार्टी के प्रदर्शन को विश्लेषकों को आश्वस्त करना चाहिए जो भाजपा के भविष्य के प्रभुत्व के बारे में संदेह करवाता हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल अपनी पार्टी को फिर से जिताने बल्कि अपने प्रदर्शन को  और भी बेहतर बनाने में सफल रहे हैं।

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