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30,000 सिक्खों ने डेरा डाला और नाम हो गया तीस हजारी

​तीस हजारी नाम कैसे पड़ा? कम ही दिल्लीवाले नाम के पीछे की हिस्ट्री से वाकिफ हैं.

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By Mrigendra | लाइफ स्टाइल - 14 July 2021

​तीस हजारी का नाम सुनते ही सेशन कोर्ट का ख्याल आ जाता है. हालांकि तीस हजारी में सिर्फ कोर्ट ही नहीं है, बल्कि पूरे इलाके का नाम है. सन् 1958 में कोर्ट चालू होने से पहले भी एरिया तीस हजारी ही कहलाता रहा है. है पुरानी दिल्ली में, पहले दिल्ली-6 का हिस्सा था, लेकिन अब दिल्ली-110054 लगता है. मोरी गेट, आजाद मार्केट, बर्फखाना और सिविल लाइंस से घिरा है.



पहले बाग थे

​तीस हजारी नाम कैसे पड़ा? कम ही दिल्लीवाले नाम के पीछे की हिस्ट्री से वाकिफ हैं. असल में तीस हजारी कोर्ट की जगह खाली मैदान था, जिसमें सिख फौजियों ने डेरा डाला था. तीस हजार हिन्दी शब्द या संख्या है. मतलब है- 30,000 और 30,000 सिखों ने डेरा डाला, इसलिए इलाका तीस हजारी कहलाने लगा. उससे और पहले, यहां फलों से लेद बागान हुआ करते थे. कुछ का मानना है कि यहां 4000 सिख फौजियों के 30,000 घोड़ों का अस्तबल था. 

​सिख इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि सरदार बघैल सिंह के नेतृत्व में 30,000 बहादुर सिखों की फौज ने यहां कैम्प लगाया था. सन् 1783 में, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के शासनकाल के दौरान, सरदार बघैल सिंह और उनके बहादुर यहां महीनों डटे रहे थे. मुगल बादशाह ने लाल किले पर कब्जा न करने की शर्त पर, सरदार बघैल सिंह की मांग मंजूर कर ली थी. मांग थी कि दिल्ली में सिख गुरूओं से जुड़ी जगहों की तलाश और वहां गुरूद्वारे बनाने की इजाजत दी जाए. मुंशी राम दयाल और बेगम समरू ने बादशाह और सरदार बघैल सिंह के बीच समझौता कराने में खासी मदद की थी और 4 साल यहां रहने के एवज में फौजियों के खर्च की भरपाई मुगल खजाने से की गई. 


नजदीक ही पुल मिठाई

​पुल मिठाई भी तीस हजारी का हिस्सा है. आजाद मार्केट और कुतुब रोड के चैक पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी रोड पर पुल मिठाई है. पुल मिठाई के नामकरण के पीछे भी सरदार बघैल सिंह जुड़ा है. बताया जाता है कि सिखों की मांग मान ली गई थी. इसलिए जीत की खुशी में सरदार बघैल सिंह ने यहाँ मिठाइयां बांटी थीं. तब से पुल मिठाई नाम पड़ गया। आज यहां मिठाई नहीं, बल्कि अनाज, मसाला और मेवों का फुटपाॅथ बाजार लगता है और नीचे रेल लाइन हैं. सवाल है कि 1783 में पुल मिठाई कहलाया, लेकिन दिल्ली में पहली रेल लाइन 1860 के दशक में बनी थी. फिर उस जमाने में, पुल के नीचे क्या था?  


अस्पताल, स्कूल और


तीस हजारी की पुरानी बिल्डिंग में सेंट स्टीफंस अस्पताल, क्वींस मैरी स्कूल और टेलीफोन एक्सचेंज शामिल हैं. अस्पताल और स्कूल की पुरानी बिल्डिंग 1908 की बनी हैं. अस्पताल की शुरूआती बिल्डिंग आज भी मौजूद है, बेशक छुपी-छुपी है और आसपास नई-नई इमारतों से घिर गई है. पुरानी बिल्डिंग में आज नर्सिंग स्कूल और स्टाफ फ्लैट्स हैं. बुजुर्ग बताते हैं कि सत्तर के दशक तक तीस हजारी अस्पताल के नाम से ही ज्यादा जाना जाता है. फिर धीरे-धीरे कोर्ट तीस हजारी और अस्पताल सेंट स्टीफंस के नाम से मशहूर होता गया. स्कूल और अस्पताल के बीच सराय फूस में मुगलकाल की एक मस्जिद भी है. 

​तीस हजारी नाम से मेट्रो स्टेशन भी है. इसका एक मुहल्ला सराय फूस है, जहां फर्नीचर और तन्दूर की दुकानें हैं. यहां के तन्दूरों की खासी तारीफ है और दुनिया भर के इंडियन रेस्टोरेंट्स की रसोई की शान बनते हैं. आसपास गोखले मार्केट और खन्ना मार्केट भी हैं. बटलर रोड पर दिसम्बर 1931 में बनी क्राइस्ट मैथोडिस्ट चर्च की अपनी अहमियत है.

​फिर भी, आज वार्किंग डेज पर तीस हजारी कोर्ट में सबसे ज्यादा चहलपहल होती है. यहां पूर्व प्रधानमंत्री  इन्दिरा गांधी तक एक पेशी के लिए आ चुकी है. कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक यह एशिया का सबसे बड़ा डिस्ट्रिक कोर्ट है और इसमें 400 कोर्ट रूम हैं. इसका निर्माण 1953 में शुरू हुआ और मार्च 1958 में अदालती कार्यवाही चालू हुई. विडम्बना ही है कि आज भी नाम तीस हजारी ही है, जबकि यहां हर वर्किंग डे पर 50,000 से ज्यादा लोग आते-जाते हैं. 

 

कुछ नाम ऐसे भी

​तीस हजारी के नाम के साथ बेशक हिस्ट्री जुड़ी है, लेकिन दिल्ली के कई इलाकों के नामों का उनके इतिहास, बनावट या चरित्र से कोई वास्ता नहीं है. यमुनापार की बस्ती खिचडीपुर में खिचड़ी का दूर-दूर का नाता नहीं है. तो दक्षिण दिल्ली के पॉश न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में क्या नए-नए यार दोस्त ही रहते हैं. एक और बस्ती का नाम है शादीपुर. क्या यहां शादियां ही शादियां होती हैं. ऐसे ही शाहदरा के निकट मौजपुर में बाकी दिल्ली के मुकाबले ज्यादा मौज तो नहीं लगती. और क्या स्वास्थ्य विहार में केवल सेहतमंद ही रहते हैं और कोई बीमार नहीं होता? ऐसे और भी कई इलाके मिल जांएगे.

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