घरवालों ने ही बुझाया LJP का चिराग, अलग हुए हनुमान

लोक जनशक्ति पार्टी के भावी नेता और केंद्रीय राजनीतिक में दशकों तक छाए रहे रामविलास पासवान के निधन के बाद अब पार्टी में उथल-पुथल सी मची हुई है

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लोक जनशक्ति पार्टी के भावी नेता और केंद्रीय राजनीतिक में दशकों तक छाए रहे रामविलास पासवान के निधन के बाद अब पार्टी में उथल-पुथल सी मची हुई है, जिसके बाद चिराग पासवान राजनीतिक मझधार में अकेले पढ़ते नजर आ रहे है. चिराग पासवान को एक के बाद एक बड़े झटके मिल रहे हैं. जहां पहले पिता की मौत के चलते वो बिखर से गए थे. वही, अब राजनीति तनाव वो झेल रहे हैं. दरअसल पार्टी के पांच सांसदों ने बगावत करते हुए चिराग पासवान को सभी पदों से हटाते हुए पशुपति कुमार पारस को एलजेपी का नया राष्टीय अध्यक्ष और अपना नेता चुन लिया है. इस परिस्थिति के बाद ऐसा लग रहा है कि उनका राजनीति करियर अब खतरे में जा रहा है, जानिए किन तीन बड़े झटकों के चलते उनका राजनीति सफर अंधेरे में जाता जा रहा है. 

पहला झटका- बिहार चुनाव

चिराग पासवान को पहला बड़ा झटका बिहार में हुए चुनाव के नतीजों से लगा, जिसमें उनके ऑपोजिट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहे थे उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखे हमले किए थे. अपनी पार्टी के नेताओं को इतना तक कहा कि भले ही हमें नुकसान हो जाए लेकिन हमें नीतीश कुमार को हराना है रामविलास की मृत्यु के बाद एलजेपी के पोस्टर ब्वॉय चिराग पासवान बने गए थे. वह पार्टी से जुड़े हर एक फैसला खुद से लेने लगे और यह बात पार्टी के बाकी नेताओं को पसंद नहीं आ रही थी. विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ न लड़ने का फैसला चिराग पासवान का ही माना जाता है, जिसकी वजह से एलपीजी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा हालांकि उस वक्त पार्टी की कमान चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस पासवान के हाथों में ही थी.

दूसरा झटका- राजकुमार सिंह की राजनीति

चिराग पासवान को दूसरा बड़ा झटका उनकी लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर माहिटनी से जीतने वाले एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह ने दिया. माहिटनी के जीते हुए विधायक राजकुमार सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी को छोड़कर जेडीयू जाने का फैसला लिया. पिछले साल अप्रैल के महीने में जब राजकुमार सिंह ने जेडीयू का दामन थामा तब कहा गया था कि जेडीयू ने लोक जनशक्ति पार्टी को ब्रेक लगा दिया है. विधानसभा में पहुंचे हुए राजकुमार सिंह की खबर काफी चर्चा में थी कि वह जेडियू के संपर्क में हैं. वह कई बार सरकार के लिए खुलकर सामने भी आए और फिर अप्रैल में लोक जनशक्ति पार्टी को छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गए.

तीसरा बड़ा झटका- पांच सांसदों का छूटा साथ

चिराग पासवान को तीसरा सबसे बड़ा झटका उन्हीं के चाचा पशुपति पारस पासवान ने दिया. उनके नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी के छह सांसदों में से पांच सांसदों ने चिराग पासवान के चाचा पशुपति पासवान को समर्थन दिया और यही नहीं चिराग पासवान को हटाकर उनके चाचा पशुपति पासवान को संसदीय दल का नेतृत्व करने के लिए नेता चुन लिया. चाचा के इस कदम ने चिराग पासवान को राजनीति मझधार में अकेला छोड़ दिया. जो 5 सांसदों ने चिराग पासवान से अलग होने का फैसला लिया उनमें से उनके चाचा पशुपति पारस पासवान, प्रिंस राज जो कि चचेरे भाई हैं, चंदन सिंह, वीणा देवी और महबूब अली, केशर जैसे नेता शामिल हैं और अब चिराग इस पार्टी में बिल्कुल अकेले हैं.

क्या राजनीति पर लग जाएगा ब्रेक 

लोक जनशक्ति पार्टी की बगावत के बाद यह सवाल उठता है कि देश के राजनीतिक इतिहास में क्या यह पहली बार हो रहा है कि जब परिवार के किसी नेता ने अपने ही परिवार के दूसरे नेता के साथ बगावत की हो तो आपको बता दें कि नहीं ऐसा भी पहले भी हो चुका है. दरअसल महाराष्ट्र की जानी-मानी पार्टी के नेताओं के बीच भी ये देखने को मिला था और यह कोई और नहीं ब्लकि रिश्ते में चाचा भतीजा लगने वाले बाल साहेब ठाकरे और राज ठाकरे थे.

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