धनतेरस, दिवाली, भैयादूज: जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और मंत्र

त्योहारों के सीजन की हुई शुरुआत। जानिए क्या है धनतरेस से लेकर भैयादूज तक का शुभमुहूर्त, पूजन विधि और मंत्र सारी जानकारी यहां।

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दिवाली का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में भी अब कई भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। बुराई पर सच्चाई की जीत का ये पर्व हमारी जिंदगी में कई रोशनियां लेकर आता है। त्योहारों के शुभ दिनों की शुरुआत धनतेरस से लेकर भैयादूज पर आकर खत्म होती है। यानी कम से कम 4 दिन तक हर जगह जगमगाती रोशनी के साथ-साथ इन त्योहारों को मनाया जाता है। वैसे इन सभी त्योहारों का अपना महत्व और मान्यता है। शुभ मुहूर्त के हिसाब से यदि सही पूजा-विधि के साथ इन त्योहार को मनाया जाए तो अलग ही तरह की खुशी और आशीर्वाद भगवान का आपको प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कि इस बार धनतेरस, दिवाली और भैयादूज की पूजा का शुभमुहूर्त, पूजन विधि और मंत्र।

धनतेरस:

धनतेरस की पूजा का खास महत्व माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश और कुबेर की पूजा की होती है। बहुत कम लोगों को पता है कि इस दिन भगवान धनवन्तरी का जन्म हुआ था। दरअस समुंद्र मंथन जब हुआ था तब अमृत का कलश और आयुर्वेद को लेकर वो सबके सामने प्रकट हुए थे। इस दिन सोने-चांदी की चीजों को खरीदना अच्छा माना जाता है।

कब है धनतेरस: त्रयोदसी तिथि इस बार 12 नवंबर के दिन शाम से शुरु होगी, जोकि 13 नवंबर को दोपहर 3 बजे तक रहने वाली है। 

शुभ मुहूर्त: शाम 5:32 से 5:59 मिनट

पूजा की विधि: धनतेरस के दिन शाम को शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश, मां लक्ष्मी और कुबेर जी की एक तस्वीर को एक पटरी पर रखें। उसके बाद एक घी का दिया जलाए। उसके बाद सभी को चंदन का तिलक लगाए। पूजा के वक्त कुबरे जी के मंत्र का ध्यान रखे। इस दौरान आप यदि धनवंतरी स्तोत्र का पाठ करते हैं तो वो काफी शुभ होता है। बाद में भगवान धनवंतरी को पीले रंग की किसी भी मिठाई का आप भोग लगा सकते हैं और वही, कुबरे जी को सफेद रंग की मिठाई चढ़ाए। मां लक्ष्मी और गणेश जी की भी पूजा करें। मां लक्ष्मी के आगे भी दीया जाए और उन्हें तिलक लगाएं। मां को पूजा में कमलगट्टे को अर्पित करें। भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को भी फूल और फल चढ़ाएं। मिठाई का उन्हें भी भोग लगाए। उसके बाद आरती करें।

मंत्र: ॐ धन्वंतराये नमः॥ श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

दिवाली: 

दिवाली वाले दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है। इस दिन दोनों की पूजा करने से बुद्धि के साथ-साथ धन की भी प्राप्ति होती है। यहीं वजह है कि पूजा करते वक्त दोनों की देवी-देवताओं को साथ रखा जाता है। दिवाली का पर्व असत्य पर सत्य की जीत के तौर पर भी मनाया जाता है। 

कब है दिवाली: 14 नवबंर 

पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 5:28 बजे से लेकर 7: 24 बजे तक है।

पूजा की विधि: 

इस दिन भगवान गणेश ,मां लक्ष्मी, मां सरस्वती धनवंतरि और कुबेर जी की पूरी विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। शाम के वक्त प्रदोष काल में पूजा करने को शुभ माना जाता है।  पूजा करने से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहने। इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़क लें और उस पर पीला या फिर लाल रंग का एक कपड़ा बिछाएं। कपड़े पर सभी देवी-देवताओं की मूर्ति या फिर तस्वीर स्थापित करें। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। फिर हाथ में चावल लेकर भगवान धनवंतरि को चढ़ाएं। भगवान को इसके बाद पंचामृत से स्नान कराकर, रोली चंदन से तिलक कर उन्हें पीले रंग के फूल चढ़ाएं। बाद में अब उन्हें फल और नैवेद्य अर्पित करके उन पर आप इत्र छिड़क दें। भगवान धनवंतरि का ध्यान उनके मंत्र के साथ करें और उनके आगे तेल का दीपक भी जलाएं। इन सबके बाद धनतेरस की कथा पढ़ें और आरती करें। इन सबके बाद भगवान धनवंतरि को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। फिर  मां लक्ष्मी और कुबरे जी की भी पूजा करें। पूजा खत्म करने के बाद घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ तेल का दीपक जरूर जलाएं।

मंत्र: ''ऊं श्ररीं ह्रीं श्री कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नम:।।'' 

भैयादूज

रक्षा बंधन के बाद ये त्योहार भाई-बहन से जुड़ा एक बेहद ही पवित्र त्योहार है। इस दिन बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसकी सेवा करती है, भोजन करवाती है और उसके लिए अच्छी कामना करती है। ऐसा कहा जाता है कि यदि इस दिन यमुना नदीं में स्नान किया जाता है और यदि सांप भी काट लें तो कोई असर नहीं होता है।

कब है भैयादूज: 16 नवंबर 2020

शुभ मुहूर्त: दोपहर 01:10 बजे से दोपहर 03:18 बजे तक

पूजा की विधि:

इन दिन जल्दी उठकर बहनें  अपने भाईयों को टीका लगाती है और उनकी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है। इस दिन सबसे पहले भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा जरूर करनी चाहिए। यदि आपसे हो सकें तो इस दिन यमुना में स्नान करें। ऐसा इसलिए क्योंकि यमुना यमराज की बहन हैं। इस त्योहार की शुरुआत उन्होंने ही की थी। पूजा में सबसे पहले बहनें अपने भाई के माथे पर चवाल के साथ तिलक लगाती हैं और उसके बाद भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाकर पान, सुपारी के साथ-साथ फुल आदि रखकर उसके हाथ पर जल गिराती है। इसके बाद बहनें अपने भाई की आरती उतारकर उनके हाथों में कलावा बांधती है। कई जगहों पर इस दिन सूखा नारियल भी दिया जाता है। फिर भाई को मिठाई खिलाई जाती है। इस दिन शाम के वक्त बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती है।

मंत्र: " सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे" 

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