रायपुर में हुआ गोबर के चप्पल का आविष्कार

रितेश अग्रवाल ने कहा कि गोबर से की जाने वाली उत्पादन से 15 लोगों को रोजगार भी मिलता है और गोबर के चप्पल को 4 घंटे तक पानी में भिगाने के बावजूद वो खराब नहीं होता.

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दुनिया में कई तरीके से चप्पल बनाए जाते है. आपने प्लास्टिक के चप्पल, चमड़े के चप्पल या फिर खराव के नाम तो सुने है, लेकिन गोबर के चप्पल तो पहली बार सुना होगा. जी हां, गोबर के चप्पल का भी आविष्कार हो चूका है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक पशुपालक रितेश अग्रवाल ने इसकी खोज की है.

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पशुपालक रितेश अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने इस चप्पल के अलावा गोबर के उपयोग से ईंट,दीए, और देवताओं की मूर्तियां भी बनाते है. उनका मानना है कि प्लास्टिक का उपयोग करने के बाद लोग उसे फेंक देते है, जिसे कई जानवर वहीं खा लेती है और बीमार पर जाती है या फिर उस वजह से मौत हो जाती है. तो इस वजह से वो ये अनोखा काम करना शुरू किया है ताकि इससे प्लास्टिक का उत्पादन और उपयोग कम हो. 

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रितेश अग्रवाल ने कहा कि गोबर से की जाने वाली उत्पादन से 15 लोगों को रोजगार भी मिलता है और गोबर के चप्पल को 4 घंटे तक पानी में भिगाने के बावजूद वो खराब नहीं होता और नाही वो गलता है. रितेश ने आगे बताया कि उन्होंने इस गोबर से बनी चप्पल के दाम 400 रुपए तय किए है. 

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