असफलता से सीखना ही आपकी सफलता की कुंजी क्यों है?

बहुत सी तीरंदाज़ी प्रतियोगिताएँ जीतने के बाद एक नौजवान तीरंदाज़ खुद को सबसे बड़ा धनुर्धर (धनुर्विद्या जानने वाला) मानने लगा । एक बार उसने एक प्रसिद्द धनुर्धर मास्टर को चुनौती देने का फैसला किया। नवयुवक बोला - “मास्टर मैं आपको तीरंदाज़ी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ ।

तीरंदाजी
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बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिता के फाइनल के बाद एक तीरंदाज खुद को सबसे बड़ा धनुर्धर यानि (धनुर्विद्या दर्शन वाला) लगा। वह जहां लोगों को प्रतिस्पर्धा करने के लिए चुनौती देती है, और उन्हें हरा कर अपनी मज़ाक उड़ाती है। एक बार उन्होंने एक प्रसिद्द धनुर्धर गुरु के निर्णय को चुनौती दी और सुबह-सुबह पहाड़ों के बीच अपने निवास स्थान पर पहुंचे।

नवयुवक बोला - "मास्टर मैं आपको तीरंदाजी कॉलोनी के लिए चुनौती देता हूं।" “,

मास्टर ने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली।

मुक़ाबला शुरू हुआ।

नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूरवर्ती लक्ष्य के ठीक बीचो-बीच समुद्र तट लगाया दिया।

अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, “कहिए मास्टर, आप इससे बेहतर क्या दिखा सकते हैं?” यदि 'हां' तो कर के दिखाइए, यदि 'नहीं' तो हार मान लीजिए।

मास्टर बोला, “बेटा, पीछे आओ !”

मास्टर-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुंचे।

नवयुवक यह सब देख कुछ घबड़ाया और बोला, “मास्टर, ये आप मुझे कहां लेकर जा रहे हैं?” “

मास्टर बोले, “चिंताओ मत पुत्र, हम लगभग पहुंच ही गए हैं, बस अब हम इस जार पुल के बीचो-बीच पर जा रहे हैं।” “

नवयुवक ने देखा कि दो शिलाओं को जोड़ने के लिए किसी ने लकड़ी के एक कामचलाऊ पुल का निर्माण किया था, और मास्टर उसी पर जाने के लिए कह रहे थे।

मास्टर पुल के बीचो - समुद्रतट, कमांड से तीर की ओर और दूर एक पेड़ के तने पर बुनियादी ढांचे। उत्पाद खरीदने के बाद मास्टर ने कहा, “आओ बेटे, अब तुम भी वही पेड़ आजमाओ कर अपनी क्षमता सिद्ध करो। “

नवयुवक भयभित आगे उन्नत और बेहद मजबूत पुल के बीचों-बीच पहुंच और किसी भी तरह के कमांड से तीर को हटाकर कर विस्तार में उपयोग में लाना लक्ष्य के आस-पास भी नहीं लगा।

नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

तब मास्टर बोले, “बेटा, तू तीर-धनुष पर तो हस्तशिल्प कर सकता है लेकिन उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए जरूरी है।” बेटा, इस बात पर हमेशा ध्यान दें कि जब तक इंसान के अंदर सीखने की जिज्ञासा होती है तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है लेकिन जब तक उसके अंदर का सर्वोत्तम व्यवहार आ जाता है तब तक उसका गिरना स्तर खत्म हो जाता है।''

नवयुवक गुरु की समझ में आ गया था, उन्हें एहसास हुआ कि उनका धनुर्विद्या का ज्ञान बस मानकीकृत पैमाने पर है और उन्हें अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। उसने अपने व्यवहार के लिए मास्टर से क्षमा अवकाश और सदा एक शिष्य की तरह की शिक्षा और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली शुरू की

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