पाकिस्तान में स्थित है देवी शक्तिपीठ का मंदिर, जहां मुस्लिम भी पूजा करते हैं

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर बसा यह मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. नवरात्रि के दौरान यहां एक मेला लगता है जो दुनिया भर के हजारों हिंदुओं और मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

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नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा के 9 स्वरुपों की अराधना की जाती है. हिंदू धर्म के अनुसार मां दुर्गा के सभी स्वरुपों की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है. वहीं आज से चैत्र नवरात्रों की शुरुआत हो चुकी है. हालांकि ये समय कोरोना का है. इसके बाद भी श्रद्धालु मंदिर में पहुंच रहे हैं. इसी मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं एक खास शक्तिपीठ के बारे में, जिसे दुनियाभर के देवी के भक्तों के बीच खास जगह मिली हुई है. देवी की ये शक्तिपीठ भारत में नहीं पाकिस्तान में है. ये है पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर की. इसे हिंगलाज भवानी मंदिर भी कहा जाता है. कहा जाता है कि यह मंदिर 2000 साल से भी अधिक पुराना है.

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पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर बसा यह मंदिर  बहुत सिद्ध माना जाता है. यहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन है, लेकिन श्रृद्धालु इस मंदिर में साल भर आते हैं. नवरात्रि के दौरान यहां एक मेला लगता है जो दुनिया भर के हजारों हिंदुओं और मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करता है.


इस मंदिर की कहानी बहुत प्राचीन है. भगवान शिव और देवी सती का विवाह हुआ था, लेकिन देवी सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर का अपमान किया तो  देवी सती ने आत्मदाह कर लिया. जब शंकर जी को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वे क्रोध से भर गए. आत्मदाह के बाद देवी के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगहों पर गिरे जहा-जहां वे हिस्से गिरे वहां शक्तिपीठ बनी.

हिंगलाज मंदिर वहां स्थित है जहां देवी सती का सिर गिरा था. यही कारण है कि  मंदिर में मातै अपने पूर्ण रूप में दिखती बल्कि  सिर्फ उनका सिर दिखाई देता है. चूंकि सिर का शरीर में सबसे अधिक महत्व है, इसलिए हिंगलाज माता का महत्व भी शक्तिपीठों में सबसे अधिक माना जाता है. 

यहां पर हिंदू-मुस्लिम की एकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. मुस्लिमों  को भी देवी के सामने सिर झुकाते देखा जाता है. पाकिस्तानियों के लिए यह मंदिर  एक नानी का मंदिर है. हजारों भक्त भक्ति के साथ नानी के इस मंदिर में आते हैं। मंदिर की प्रंबधक कमेटी में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं. यहां तक पहुंचने का रास्ता कठिन होने के साथ-साथ खूबसूरत भी है. यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन बहुत प्राचीन है. यह गुफा के अंदर है.


क्या भारतीय यहां आ सकते हैं. इस प्रश्न का जवाब यही है कि आप यहां जा सकते है लेकिन केवल आवश्यक कागजात के बाद. वहां जाने के लिए भारतीयों को पाकिस्तान सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है. अगर पासपोर्ट वीजा सही है तो पाकिस्तान सरकार अनुमति दे सकती है.

यह शक्तिपीठ बहुत सिद्ध है. दुनियाभर के  हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह भी माना जाता है कि अगर कोई भक्त माता के दर्शन करने के लिए 10 फीट लंबी अंगारे वाली सड़क पर चलता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी.

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देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठ में से केवल 42 भारत में स्थित हैं। इसके अलावा पांच देशों में 9 शक्तिपीठ हैं. इनमें एक पाकिस्तान में, चार बांग्लादेश में, एक श्रीलंका में, एक तिब्बत में और दो नेपाल में हैं. पाकिस्तान में हिंगलाज शक्तिपीठ, तिब्बत में मानस शक्तिपीठ, श्रीलंका में लंका शक्तिपीठ, नेपाल में गण्डकी शक्तिपीठ और गुह्येश्वरी शक्तिपीठ, बांग्लादेश में सुगंध शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ और यशोर शक्तिपीठ हैं. भारत के कई लोग विदेशों में स्थित इन शक्तिपीठों के दर्शन करने जाते हैं.

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