20 साल से गौशाला में काम कर रहे हैं खान चाचा, धार्मिक एकता की पेश की मिसाल

आज हम आपको जिंदगी की संघर्ष की ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे है जिसको पढ़ने के बाद आप भी कहेंगे कि मेहनत करके कुछ भी हासिल किया जा सकता है.

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देश में आजादी के बाद से ही हिंदू-मुस्लिम धर्म का मुद्दा हमेशा विवादों में रहा है. धर्म की संरचना पर बैठी देश की राजनीति से रणनीति हर बार एक नई कहानी बयां करती है, लेकिन ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कहानी बता रहे हैं जिसे Humans of Bombay से शेयर किया है. यह कहानी खान चाचा चचा की है. खान चचा बीते 20 सालों से राजस्थान के जैसलमेर में गौशाला में काम कर रहे हैं.

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दरअसल साल 2000 में राजस्थान के जैसलमेर में खान चाचा काम की तलाश में पहुंचे थे. वह एक साल तक काम की तलाश  करते  रहे, लेकिन उन्हें कहीं भी काम नहीं मिला. इसके बाद उन्हें एक गौशाला के बारे में पता चला, जहां एक हेल्पर की वैकेंसी खाली थी. नौकरी का पता चलते ही खान चाचा वहां पहुंच गए. 

साल 2019 में बेटे की हुई थी मृत्यु

खान चाचा कहना हैं कि यह गाय उनके जीवन में उनके परिवार की तरह है. दूसरी ओर खान चाचा ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों को गौशाला में काम करने से मिलने वाले वेतन से पढ़ाया.  50 साल की उम्र में उनकी सभी जिम्मेदारियां पूरी हो गई. इसके बाद उन्होंने हज जाने के लिए पैसे जोड़े, लेकिन 2019 में उनके बेटे की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई. 

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बेटे की मौत के बाद उनके दोनों बच्चों की जिम्मेदारी खान चाचा पर आ गई. बच्चों की शिक्षा का सारा खर्च उन पर आ गया. इन मुश्किल हालातों में गौशाला में काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों ने उनकी खुले दिल से मदद की. दूसरे कर्मचारियों को जब खान चाचा के परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में पता चला तो सभी ने मिलकर 30,000 रुपये का बंदोबस्त किया और खान खान को दे दिए.

खान चचा बताते हैं कि यह सब देखकर मेरी आंखें नम हो गई और मैं आज यही सोचता हूं कि अगर मैं उन लोगों के लिए कुछ कर पाऊं तो अपने आप को खुशनसीब समझूंगा. खान चाचा की यह कहानी आज उन लोगों के लिए मिसाल है जो धर्म के नाम पर कटाक्ष या लड़ाई करते हैं

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