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अंबानी-अडानी के हित में बनाया गया है कृषि कानून? किसानों के आरोप पर ये है कंपनी का जवाब!

जिसके बाद इन सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए गौतम अडानी ने अपनी बात रखी है। अडानी समूह के प्रवक्ता ने सभी से अनुरोध किया है कि वे समाचारों की जांच करें और गलत सूचना न फैलाएं।

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By Anshita Shrivastav | व्यापार - 11 December 2020

देशभर में कृषि बिल को लेकर बबाल जारी है। किसान किसी भी तरह आंदोलन को ख़त्म करने के लिए राज़ी नहीं हो रहे हैं। पिछले कई दिनों किसानों द्वारा कृषि  बिल के खिलाफ आंदोलन जारी है। सरकार कई बार बातचीत के जरिए से इस मसले को सुलझाने का प्रयास कर चुकी है। लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। जिसके बाद गुस्साए किसानो ने 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान किया। हालांकि उसमे भी कोई हल नहीं निकल सका जिसके बाद अब एक बार फिर किसानों ने 12 से 14 दिसंबर तक देश में बड़ा प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया है। जहां एक तरफ किसान पीछे हटने को राजी नहीं हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार भी अपना फैसला बदलने को राजी नहीं है। किसानों का कहना है सरकार बिल को निरस्त करदे लेकिन सरकार का कहना है कि वो निरस्त नहीं करेगी संसोधन करेगी। 

इसी बीच समाने आई एक खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी।  खबर ये थी कि 7 मई 2020 को जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था। ऐसे समय में अडानी ग्रुप को एक वेयर हॉउस के लिए परमिशन के एक लेटर पर सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए गए। जिसके बाद से कई लोगों ने सरकार पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। लोगों ने कहा कि ये फार्म बिल अंबानी और अडानी के फायदे के लिए लागू किए गए हैं। जिससे वो लोग वेयरहाउस बनवा सके और सामानों को स्टोर कर सकें। 

जिसके बाद इन सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए गौतम अडानी ने अपनी बात रखी है। अडानी समूह के प्रवक्ता ने सभी से अनुरोध किया है कि वे समाचारों की जांच करें और गलत सूचना न फैलाएं।

“अडानी समूह वर्ष 2005 से FCI के लिए अनाज सिलोस के विकास और परिचालन के व्यवसाय में है, जिसमें कंपनी ने भारत सरकार द्वारा स्थापित पारदर्शी बोली मानकों के आधार पर भंडारण बुनियादी ढाँचा स्थापित किया है। भंडारण की मात्रा के साथ-साथ अनाज के मूल्य निर्धारण में भी कंपनी की कोई भूमिका नहीं है क्योंकि यह केवल FCI के लिए प्रदान की जाने वाली सेवा / अवसंरचना है, जबकि FCI सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्नों की खरीद और आवाजाही को नियंत्रित करता है। । हम किसानों से खरीदे गए किसी भी अनाज के मालिक नहीं हैं, और अनाज के मूल्य निर्धारण से जुड़े नहीं हैं। इस तरह के भंडारण से किसानों को लाभ होता है, और वे प्राथमिक लाभार्थी होते हैं।

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