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अंबानी ने अर्बन लैडर में खरीदी 96 फीसदी हिस्सेदारी, इतने करोड़ में हुआ सौदा, जानिए इस डील से किसे-क्या होगा फायदा?

रिलायंस द्वारा कंपनी के अधिग्रहण का मतलब है कि कंपनी को अब अपने घाटे की भरपाई करने के लिए पैसे की चिंता करने की जरूरत नहीं है।

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By Anshita Shrivastav | व्यापार - 16 November 2020

साल 2020 जहां एक तरफ सभी के लिए दुःखद रहा  वहीं कुछ लोगों ने इस साल में काफी तरक्की हासिल की और उनमे से एक नाम है मुकेश अंबानी। उनकी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड इस पूरे साल लगातार सुर्ख़ियों में बनी रही है।  गूगल फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों ने भी रिलायंस के साथ हाथ मिलाया।  वहीं अब ये कंपनी एक बार फिर सुर्ख़ियों में आगई है। आपको बता दें रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सहायक कंपनी रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड द्वारा अब  ऑनलाइन होम डेकोर कंपनी अर्बनलेडर 182.12 करोड़ रुपये में 96% हिस्सेदारी खरीद ली गई है। 


क्या है सौदा ?

रिलायंस रिटेल ने सिकोया कैपिटल इंडिया, कलारी कैपिटल और स्टीडव्यू कैपिटल के साथ बेंगलुरु में स्थित अर्बनलेडर में 96% हिस्सेदारी खरीदी है, बता दें कि इनके द्वारा कंपनी लॉन्च होने के बाद से लगभग 115 मिलियन डॉलर का निवेश किया जा चुका है। रिलायंस रिटेल के पास बैलेंस हिस्सेदारी हासिल करने का विकल्प है, जो कि शेयरहोल्डिंग को 100% इक्विटी शेयर कैपिटल अर्बनलैडर में ले रहा है। रिलायंस द्वारा अर्बनलाडर में 75 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, और यह निवेश दिसंबर 2023 तक पूरा होने की उम्मीद की जा रही है।


रिलायंस रिटेल के लिए सौदे का क्या मतलब है?

यह सौदा रिलायंस के ई-कॉमर्स प्ले का समर्थन करता है। दूरसंचार, ई-भुगतान, ऑनलाइन कॉमर्स, कंटेंट स्ट्रीमिंग आदि सहित डिजिटल सेवाओं के अपने मौजूदा पोर्टफोलियो के साथ, ये अधिग्रहण सेवाओं के लिए भी नई शुरुआत की गई हैं, यह सौदा रिलायंस रिटेल को बढ़ते ऑनलाइन फर्नीचर रिटेलर तक भी पहुंचाएगा। जिसने अपने कारोबार को तीन साल में लगभग 10 गुना बढ़ाकर वित्त वर्ष 2018-19 के लिए 434 करोड़ रुपये कर दिया है।


अर्बनलैडर के लिए सौदे का क्या मतलब है?

2018-19 के दौरान, अर्बनलाडर ने 49 करोड़ रुपये का लाभ कमाया था, बता दें कि  2012 मे कंपनी की स्थापना के बाद ऐसा पहली बार हुआ था। कंपनी को  2017-18 और 2016-17 में क्रमशः 118.66 करोड़ रुपये और 457.97 करोड़ रुपये का घाटा भी हुआ था। अब रिलायंस द्वारा कंपनी के अधिग्रहण का मतलब है कि कंपनी को अब अपने घाटे की भरपाई करने के लिए पैसे की चिंता करने की जरूरत नहीं है। सूत्रों के अनुसार, फिलहाल कंपनी रिलायंस इकोसिस्टम के अंदर एक अलग ब्रांड के रूप में सीईओ और को-फाउंडर आशीष गोयल के साथ ही काम करना जारी रखेगी।


ऑनलाइन फर्नीचर रिटेल में वृद्धि मुख्य रूप से दो कंपनियों पेपेरफ्री और अर्बनलैडर द्वारा किये गए कार्यों का एक परिणाम थी। 2016 में, किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप ने ऑनलाइन फर्नेस कंपनी फैबफर्निश का अधिग्रहण किया और एक साल बाद, कंपनी और ब्रांड को पूरी तरह से बंद कर दिया। इसके बाद इस साल फरवरी में, केमिकल बनाने वाली कंपनी पिडिलाइट इंडस्ट्रीज ने पेपेरफ्री में $ 40 मिलियन का निवेश किया। 


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