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महामारी ने देश के त्योहारी सीजन पर भी डाला प्रभाव, क्या-क्या आ रही समस्याएं जानें यहां

आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 के बाद ये सबसे खराब सीजन होने वाला है। ये भी स्पष्ट है कि साल 2021 तक वैक्सीन आने की कोई उम्मीद नहीं है।

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By Anshita Shrivastav | व्यापार - 14 September 2020

भारत में सभी त्योहारों का बहुत ही महत्व होता है और  त्योहारों को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसी काऱण से भारतीय त्योहारों का देश की रेवन्यू में भी बड़ा हाथ होता है। भारत का त्योहार सीजन सितंबर से शुरू होकर साल के खत्म होने तक चलता है, देश में सभी प्रकार के व्यवसायों के लिए रेवेन्यू का प्रमुख स्रोत रहा है। ज्यादातर कंपनियां तो इन दिनों में ही पूरे साल भर का मुनाफा कमा लेती हैं।  2019 में भी जब व्यापार नीचे जा रहे थे और आर्थिक तनाव की चपेट में थीं, तब केवल त्योहार का सीज़न ही फायदेमंद साबित हुआ था।

हालांकि हम सभी जानते हैं कि वर्ष 2020 भारत के लिए बहुत ही खराब साल रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है देश में आई महामारी कोरोना वायरस। सिर्फ महामारी के कारण साल 2020  का त्योहार सीजन सबसे खराब सीजन सबित होने वाला है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 के बाद ये सबसे खराब सीजन होने वाला है। ये भी स्पष्ट है कि साल 2021 तक वैक्सीन आने की कोई उम्मीद नहीं है। यही कारण है कि साल 2020 में त्योहार सीजन भारत के व्यापारियों के लिए कोई खास उम्मीद वाला साबित नहीं होने वाला है।


मांग में कमी 

कोरोना वायरस के कारण मांग की कमी से न केवल कंपनियों की बैलेंस शीट कमजोर होगी, बल्कि सामान की कमी पूरी होने में देरी होगी। इस बात में कोई दोराय नहीं कि देश की जीडीपी की बढ़ोतरी के लिए मांग में सुधार होना महत्वपूर्ण है, जो जून में -23.9 प्रतिशत के ऐतिहासिक स्तर पर गिर गया था। जो देश के लिए बहुत ही खराब स्थिति है। पिछले कई महीनों तक लगे लॉकडाउन के कारण भारत के व्यापर में बहुत गिरावट आई है। लोगों की आय कम होने से लोगों ने मांग भी कम कर दी है।  गैर-जरुरी सामान खरीदना बंद कर दिया है। लेकिन अनलॉक के बाद से स्थिति में कुछ सुधार आया है। 


आय पर प्रभाव  

इस वर्ष कोरोना वायरस महामारी के कारण पहले ही व्यापारी परेशान हैं। भारत में त्योहारी सीजन को अलग- अलग रोजगार में लगे व्यक्तियों के एक बड़े हिस्से के लिए साल का सबसे अच्छा समय माना जाता है। त्यौहारों के मौसम में बड़े फुटफॉल के कारण आमतौर पर छोटे व्यापारियों, रेस्तरां और विक्रेताओं के लिए व्यापार में उछाल आता है। जिस कारण से ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी पर रखा जाता है। लेकिन इस साल उद्योग पहले ही मांग की कमी को लेकर परेशान हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है क्योंकि असंगठित क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग आधा योगदान देता है।


अलग-अलग क्षेत्रों पर प्रभाव 

एक महामारी ने त्योहार के सीज़न में ऑटोमोबाइल, कपड़े, मनोरंजन आदि सभी क्षेत्रों पर बहुत  बुरा प्रभाव डाला है। हालांकि अनलॉक होने के बाद फ़ुटफ़ॉल में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बिक्री में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है।

अगर ऑटोमोबाइल के क्षेत्र की बात करें तो हर साल त्योहार सीजन में व्यापारी ज्यादा बिक्री की उम्मीद करते हैं। लेकिन इस साल ऐसा नहीं होने वाला है। 

वहीं टूरिस्ट क्षेत्र के बारे में बात की जाए तो ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि त्योहारी सीजन के दौरान इसमें ज्यादा बृद्धि होती है। जबकि ये भी सच है कि सबसे ज्यादा प्रभाव अगर किसी क्षेत्र पर पड़ा है तो वो टूरिस्ट ही है। भारत के जीडीपी में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन 2020 इस क्षेत्र के लिए सबसे खराब वर्ष साबित हुआ है।  वैक्सीन न आने के कारण सेक्टर के सामान्य स्थिति में लौटने की संभावना नहीं है।


व्यापारों में आई अचानक कमी 

कोरोना वायरस ने भारत की व्यापर की स्थिति को बहुत ही खराब कर दिया है। ज्यादातर व्यवसाय इस बात से परेशान हैं कि मांग में कमी के है तो त्योहारी सीजन के दौरान उनके पास कितना स्टॉक होना चाहिए। ज्यादातर कंपनियां पहले ही श्रम संकट की चपेट में हैं और त्योहारी सीजन के लिए कम स्टॉक होने की संभावना भी है। यहां तक कि ई-कॉमर्स कंपनियां भी इस बात से परेशान हैं। जबकि व्यस्त त्योहारी सीजन के दौरान फर्मों को अधिक लोगों को काम पर रखने की जरूरत होती है। जबकि इस वर्ष ऐसा होना मुमकिन नहीं है क्योंकि इस बार ये ही नहीं पता है कि कितने सामान की आवश्यकता पढ़ने वाली है यानि कि मांग निश्चित नहीं है।


जीडीपी में बृद्धि की उम्मीद 

अगर आने वाले इस त्योहार के सीजन में मांग में बृद्धि हो जाती है तो अगले साल तक भारत की जीडीपी में बहुत सुधार हो सकता है। इसलिए सभी व्यापारी इस त्योहार सीजन से काफी उम्मीद लगाकर बैठे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अगर सरकार त्योहारी सीजन से पहले सीधे उपायों की घोषणा नहीं करती है, तो वित्त वर्ष 2021 में वृद्धि के किसी भी रूप में सुधार की संभावना कम हो सकती है।

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