Story Content
हाल ही में एक फिल्म फुले को लेकर काफी विवाद उठ खड़ा हुआ था। यह फिल्म जातिवाद के मुद्दे को उठाती है, जिसे लेकर कुछ वर्गों में असहमति जताई गई। इस फिल्म को रिलीज़ करने का फैसला काफी समय से टल रहा था, और अंततः सेंसर बोर्ड ने फिल्म को रिलीज़ करने की मंजूरी नहीं दी। यह फिल्म भारतीय समाज में जातिवाद की जटिलताओं और उनके प्रभावों को दिखाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इसके विषय के कारण इसे रिलीज़ के लिए विवादित मान लिया गया।
वहीं, फिल्म फुले को लेकर इस विवाद के बाद, फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने सेंसर बोर्ड और ब्राह्मण समाज को लेकर कई विवादास्पद टिप्पणियां कीं। उन्होंने इस मुद्दे को लेकर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा, "धड़क 2 की स्क्रीनिंग में सेंसर बोर्ड ने कहा था कि मोदी जी ने इंडिया से कास्ट सिस्टम खत्म कर दिया है। उसी आधार पर संतोष भी इंडिया में रिलीज नहीं हुई। अब ब्राह्मण को परेशानी है फुले से। भैया जब कास्ट सिस्टम ही नहीं है तो काहे का ब्राह्मण। कौन हो आप। आपकी क्यों सुलग रही है?"
अनुराग कश्यप के इस बयान के बाद उनका सोशल मीडिया पर विरोध होने लगा। उनकी टिप्पणियों ने एक नई बहस को जन्म दे दिया, जिसमें कई लोग उनके पक्ष में और कई लोग उनके खिलाफ खड़े हो गए। इस विवाद के बाद लेखक मनोज मुंतशिर भी आक्रोशित हुए और उन्होंने अनुराग कश्यप को कड़ी प्रतिक्रिया दी। मनोज मुंतशिर ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए अनुराग कश्यप को हद में रहने की सलाह दी और कहा कि ऐसे बयान केवल समाज में और तनाव पैदा करते हैं।
यह विवाद तब और बढ़ गया जब विभिन्न समुदायों और राजनीतिक दलों के लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे। कुछ लोग इस विवाद में अनुराग कश्यप के पक्ष में थे, तो वहीं कुछ ने उनके बयान को गलत और संवेदनशील बताया। इस घटनाक्रम से यह साबित होता है कि जातिवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर फिल्में और उनके कंटेंट अक्सर विवादों का कारण बन सकते हैं, खासकर जब इन मुद्दों को समाज के बड़े वर्गों के खिलाफ प्रस्तुत किया जाता है।
इसके अलावा, यह भी देखा गया कि फिल्मों के विषय, जो जातिवाद, धार्मिक असहमति या किसी अन्य संवेदनशील मुद्दे से जुड़े होते हैं, वे आमतौर पर विवाद का कारण बन जाते हैं और सेंसर बोर्ड के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं। सेंसर बोर्ड के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी फिल्म के कंटेंट को समाज के लिए हानिकारक मानने पर उसे रिलीज़ होने से रोक सकता है।
इस घटना से यह साफ हो गया कि फिल्म उद्योग में समाज के जटिल और संवेदनशील मुद्दों को दर्शाने की कोशिशों के साथ हमेशा एक जोखिम जुड़ा होता है। हालांकि, फिल्मों का उद्देश्य समाज में बदलाव लाने और सोच को चुनौती देने का हो सकता है, लेकिन ऐसे मुद्दों को सही तरीके से प्रस्तुत करना और सभी वर्गों की भावनाओं का सम्मान करना भी बेहद आवश्यक है। इसके साथ ही फिल्म निर्माता और अन्य संबंधित लोग भी अपने विचारों को साझा करते वक्त संवेदनशीलता का ध्यान रखें, ताकि कोई भी विवाद या अनावश्यक तनाव उत्पन्न न हो।




Comments
Add a Comment:
No comments available.