Hindi English
Login
Image
Image

Welcome to Instafeed

Latest News, Updates, and Trending Stories

चंद्रकांता का वो प्यार… जिसे दुनिया रोक न सकी !

चंद्रकांता का वो प्यार… जिसे दुनिया रोक न सकी, मंत्री की थी चंद्रकांता पर बुरी नज़र !

Advertisement
Instafeed.org

By Priyanka Giri | Faridabad, Haryana | मनोरंजन - 04 December 2025

कहानी जब राजकुमारों की होती है तो तलवारें चमकती हैं। और कहानी जब प्रेमियों की होती है तो दिल धड़कते हैं लेकिन जब दोनों एक साथ हों तो इतिहास अमर गाथा लिखता है। आज हम आपको ले चलेंगे विजयगढ़ और नौगढ़ के उन गलियारों में जहाँ राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेन्द्र सिंह की प्रेम कहानी ने इतिहास नहीं—एक दास्तान लिख दी। लेकिन इस दास्तान में सबसे बड़ा विलन था मंत्री क्रूर सिंह जिसकी बुरी नजर थी चंद्रकांता पर

कहानी की शुरुआत होती हैं चंद्रकांता से राजकुमारी चंद्रकांता सुंदरता की मिसाल। तेज़, निडर और रहस्यमयी उधर नौगढ़ का राजकुमार—वीरेन्द्र सिंह। एक जांबाज योद्धा, विजयगढ़ का महल चांदनी रात और बालकनी पर खड़ी राजकुमारी चंद्रकांता। उसके सपनों में बस एक ही चेहरा— एक अजनबी चेहरा जिसे वो कभी मिली नहीं, पर जिसने उसके दिल पर हमेशा-हमेशा के लिए निशान छोड़ दिया। उसी रात, नौगढ़ का शहज़ादा वीरेंद्र सिंह पहली बार विजयगढ़ की सरहदों पर आया। कहते हैं दोनों ने एक-दूसरे को पहली नज़र में नहीं देखा लेकिन दिलों ने— पहली ही धड़कन में पहचान लिया। ना मुलाक़ात हुई ना कोई पैगाम गया दिल से दिल तक बस एक एहसास आया। शायद यही है इश्क़ जो बिना आवाज़ के भी सदीयों तक गूंजता रहता है और फिर आया सत्ता, चाल और दुश्मनी का खेल प्यार जितना पवित्र था राजनीति उतनी ही ज़हरीली। विजयगढ़ और नौगढ़ दोनों राज्य क़दम-क़दम पर एक दूसरे के विरोधी। कभी लड़ाई कभी षड्यंत्र कभी साज़िश। लेकिन इस दुश्मनी की दीवारों के बीच विजयगढ़ के मंत्री—कुख्यात क्रूर सिंह, चंद्रकांता को पाने का सपना देखता था। वह चन्द्रकांता से विवाह करके विजयगढ़ की गद्दी पर बैठना चाहता था। लेकिन जब उसको अपने इस मकसद में कामयाबी नहीं मिल पाई तो विजयगढ़ छोड़ कर चला गया और चुनारगढ़ पहुंच गया। क्रूर सिंह ने चुनारगढ़ के राजा शिवदत्त के साथ मित्रता कर ली उसके बाद उसने राजा को बताया की वे किसी भी सूरत में विजयगढ़ की रानी चंद्रकांता को हासिल करना चाहता है। क्रूर सिंह के कहने पर शिवदत्त ने चंद्रकांता को पकड़ लिया और जब चंद्रकांता ने वहां से भगाना चाहा तो उन्हें एक तिलिस्म में कैद कर दिया। वो जगह थी— एक रहस्यमय और जादुई महल, जहाँ जाना मौत को दावत देने जैसा था। कहते हैं वो महल भ्रम, तिलिस्म और गुप्त रास्तों से भरा हुआ था। किसी को पता भी नहीं चलता कि कैदी जिंदा भी है या नहीं। चंद्रकांता को वहाँ कैद करने का सबसे बड़ा कारण था— उसे असुरक्षित और अकेला छोड़ना, ताकि वो कभी अपने प्रेमी तक न पहुँच सके। मंत्री को लगता था— महल का तिलिस्म ही चंद्रकांता को खत्म कर देगा और वो बिना लड़ाई के जीत जाएगा। लेकिन उसे क्या पता— प्यार तिलिस्म से बड़ा होता है, और प्रेम में डूबा योद्धा किसी भी जाल से पार निकल सकता है। जब वीरेन्द्र सिंह को पता चला कि चंद्रकांता को तिलिस्म में कैद किया गया है तो उन्होंने मौत को एक चुनौती की तरह स्वीकार किया। वो अकेले निकल पड़े जालों से भिड़ने, भ्रम को तोड़ने, और तिलिस्म की हर गाँठ खोलने। ये सिर्फ एक प्रेमी का संघर्ष नहीं था, ये एक योद्धा की जीत थी— अपने प्यार के लिए। लम्बी लड़ाई, कई जादुई जाल, और दुश्मनों को हराने के बाद वीरेन्द्र सिंह पहुँचे चंद्रकांता के पास चंद्रकांता की आँखे उन्हें देखकर चमक उठीं। और वहाँ तिलिस्म भी टूट गया, सत्ता भी हार गई, और जीत हुई सिर्फ— प्रेम की। चंद्रकांता की कैद सिर्फ एक सज़ा नहीं थी वो प्यार की परीक्षा थी। मंत्री की चालें टूटीं, राजाओं की साज़िशें खत्म हुईं, लेकिन जो अमर हुआ— वो था चंद्रकांता का प्रेम। क्योंकि—तिलिस्म खत्म हो सकता है, लेकिन सच्चा प्यार नहीं।


Advertisement
Image
Advertisement
Comments

No comments available.