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देवउठनी एकादशी के दिन क्यों होता है तुलसी विवाह? जानिए रहस्य !
आज हम बात करेंगे उस पवित्र दिन की, जब स्वयं भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं — जी हाँ, देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं, आषाढ़ मास की एकादशी से लेकर कार्तिक मास की एकादशी तक — भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करते हैं, और इस दौरान पृथ्वी पर सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि रोक दिए जाते हैं। लेकिन जैसे ही देवउठनी एकादशी आती है, भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और दुनिया में शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है।
तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी की सुबह भक्तजन सबसे पहले विष्णु जी का स्नान, पूजन और तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। जी हाँ, इसी दिन शालिग्राम भगवान विष्णु का विवाह तुलसी माता के साथ कराया जाता है। यह विवाह सिर्फ एक प्रतीक नहीं, बल्कि धरती और आकाश के मिलन का दिव्य उत्सव है। गांवों और शहरों में इस दिन बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा होती है। लोग घरों के आंगन में मिट्टी से छोटा सा मंडप बनाते हैं, जिसमें तुलसी और शालिग्राम को बैठाकर घंटे-घड़ियाल की ध्वनि के बीच विवाह मंत्रों का पाठ किया जाता है। महिलाएँ गीत गाती हैं — “देवा उठो जागो, तुलसी विवाह रचाओ।” कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन विधिवत व्रत रखते हैं, उन्हें सुख-सौभाग्य, धन, वैभव और मोक्ष की प्राप्ति होती है। और उनके जीवन में कभी भी किसी शुभ कार्य में बाधा नहीं आती।
देवउठनी एकादशी व्रत की कथा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवउठनी एकादशी व्रतकी कथा में राजा बलि और भगवान विष्णु का प्रसंग आता है। राजा बलि के वरदान के कारण भगवान विष्णु को पाताल लोक में रहना पड़ा, और इसी कारण उन्होंने चार महीने तक वहीं योगनिद्रा धारण की थी। लेकिन जब एकादशी आती है, तो भगवान विष्णु फिर से लोककल्याण के लिए जागृत होते हैं। देवउठनी एकादशी सिर्फ एक धार्मिक तिथि नहीं — यह है आस्था का जागरण, सकारात्मकता का प्रारंभ, और नए शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक।

"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः"




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