खुदा हाफिज चैप्टर 2 की कहानी और रिव्‍यू

निर्देशक फारूक कबीर की खुदा हाफिज वन को ओटीटी पर खूब सराहा गया। दर्शकों के इसी ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए फिल्ममेकर्स ने इसे बड़े पर्दे पर खुदा हाफिज 2 के नाम से उतारा.

  • 545
  • 0

निर्देशक फारूक कबीर की खुदा हाफिज वन को ओटीटी पर खूब सराहा गया। दर्शकों के इसी ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए फिल्ममेकर्स ने इसे बड़े पर्दे पर खुदा हाफिज 2 के नाम से उतारा. अगर कहानी पर ध्यान दिया जाता तो फिल्म और दिलचस्प हो सकती थी. बावजूद इसके कहा जा सकता है कि पार्ट 2 में विद्युत जामवाल अपने फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं.

'खुदा हाफिज 2' की कहानी

कहानी पिछले एपिसोड से आगे बढ़ती है. समीर (विद्युत जामवाल) और उसकी पत्नी नरगिस (शिवालिका ओबेरॉय) अपने जीवन की सबसे बुरी त्रासदी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां नरगिस का अपहरण कर लिया गया था और सामूहिक बलात्कार किया गया था. नरगिस पूरी तरह से टूट चुकी हैं और उनका मनोवैज्ञानिक इलाज चल रहा है. समीर अपने दोस्त की पांच साल की अनाथ भतीजी नंदिनी को उसकी जिंदगी वापस पाने के लिए घर में लाता है और समीर और नंदिनी उसे कानूनी रूप से गोद ले लेते हैं. नर्गिस नंदिनी की मासूमियत से अपने पुराने घावों को भर रही थी तभी एक दुर्घटना हो जाती है और छोटी नंदिनी एक जघन्य अपराध का शिकार हो जाती है. इसके ठीक बाद नरगिस और समीर की जिंदगी में सब कुछ बदल जाता है. समीर अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए अलग रास्ते पर जाता है, लेकिन क्या वह बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए बड़ी ताकतों और व्यवस्था के खिलाफ जा सकता है? क्या नरगिस अपनी जिंदगी में वापस आ पाएगी? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

'खुदा हाफिज 2' का रिव्यू

कहानी की दृष्टि से फिल्म का फर्स्ट हाफ इमोशनल होने के साथ-साथ समय की पाबंदी भी जोड़ता है, लेकिन सेकेंड हाफ में कहानी प्रतिशोध के बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमने लगती है, जो हमें हिंदी फिल्मों में कई बार देखने को मिलती है. कई बार देखा है. मध्यांतर के बाद कहानी एक हाई ऑक्टेन एक्शन-ड्रामा में बदल जाती है और इसमें कोई शक नहीं कि एक्शन के मामले में फिल्म बीस ही साबित होती है. एक्शन के मामले में क्लाइमेक्स में जेल वाला, मुहर्रम और मिस्र का पीछा करने वाले सीन राफ्टर्स साबित होते हैं. एडिटिंग की बात करें तो फिल्म की लंबाई 15-20 मिनट कम की जा सकती थी. जितनी हरमीत की सिनेमैटोग्राफी की तारीफ करनी होगी. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है जबकि संगीत के मामले में फिल्म अच्छी है. फिल्म 'जुनून है' और 'रुबरू' के गाने एवरेज हो गए हैं.

RELATED ARTICLE

LEAVE A REPLY

POST COMMENT