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क्या प्रेमानंद जी महाराज हैं नारायण के अवतार ?

क्या प्रेमानंद जी नारायण के अवतार हैं? देश-विदेश में करोड़ों श्रद्धालु, जिनके दिल में श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रति अपार भक्ति और श्रद्धा है, उनमें से कई लोग यह मानते हैं कि महाराज जी स्वयं भगवान विष्णु या नारायण के अवतार हैं।

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By Priyanka Giri | Faridabad, Haryana | मनोरंजन - 16 October 2025

क्या प्रेमानंद जी महाराज हैं नारायण के अवतार ? लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? क्या कोई मनुष्य ईश्वर का अवतार हो सकता है? आइए, जानते हैं इस पूरे विषय को भक्ति और ज्ञान के दृष्टिकोण से।


सबसे पहले बात करते हैं, प्रेमानंद जी महाराज की। जिन्होंने अपने प्रवचनों, अपने भक्ति संदेशों और भागवत कथा के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में आध्यात्मिक ज्योति जलाई है। महाराज जी का नाम ही “प्रेमानंद” — यानी प्रेम में आनंद — अपने आप में एक संदेश देता है कि भक्ति का मूल प्रेम ही है। उनकी वाणी में जब वे “राधे राधे” कहते हैं, तो सुनने वाले का मन मानो ब्रज की गलियों में खो जाता है। उनके सत्संग में लोग केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि ईश्वरीय अनुभूति महसूस करते हैं। अब बात आती है इस प्रश्न की — क्या वे नारायण के अवतार हैं? धर्मग्रंथों के अनुसार, ईश्वर जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब वे किसी रूप में अवतार लेकर धर्म की रक्षा करते हैं। जैसे — त्रेता युग में राम, द्वापर में कृष्ण, और अब कलियुग में… कई महापुरुष जन्म लेते हैं, जो ईश्वर के गुणों से युक्त होते हैं। भक्तों का मानना है कि प्रेमानंद जी महाराज भी ऐसे ही दिव्य पुरुष हैं — जिनमें दयालुता, करुणा, ज्ञान और प्रेम की वही झलक है, जो स्वयं भगवान नारायण में है। लेकिन यहाँ एक बात समझना बहुत ज़रूरी है। हर युग में जब भी कोई महान संत या ज्ञानी व्यक्ति लोगों को भक्ति के मार्ग पर लाता है, तो भक्त लोग अक्सर उसमें ईश्वर का अंश देख लेते हैं। जैसे – कबीरदास जी को लोग साक्षात् हरि का रूप मानते हैं, श्रीरामकृष्ण परमहंस को कृष्ण का अंश, और अब प्रेमानंद जी को नारायण का अवतार कहा जा रहा है। इन मान्यताओं में सत्य और भक्ति दोनों छिपे हैं। क्योंकि अवतार का अर्थ केवल “ईश्वर का जन्म लेना” नहीं होता, बल्कि ईश्वर के गुणों का मनुष्य में प्रकट होना भी होता है। प्रेमानंद जी ने सदा यही कहा है — “ईश्वर बाहर नहीं, आपके भीतर हैं। जब आप दूसरों में प्रेम और करुणा देखेंगे, तभी आपको नारायण का साक्षात्कार होगा।” तो हो सकता है, प्रेमानंद जी नारायण के अवतार हों… या शायद वे उस प्रेम और भक्ति के माध्यम हैं, जिसके द्वारा हम नारायण को पहचान सकें। आख़िरकार, भक्ति का अर्थ ईश्वर को देखने से नहीं, बल्कि ईश्वर को महसूस करने से है। अगर प्रेमानंद जी की उपदेशों से, उनकी भक्ति से, आपकी आत्मा को शांति मिलती है… अगर उनके दर्शन से आपके मन में प्रेम और करुणा जागती है… तो वही नारायण की उपस्थिति है। चाहे आप उन्हें अवतार मानें या महान संत, संदेश एक ही है — “प्रेम ही परमात्मा है, और परमात्मा ही प्रेमानंद है।” राधे राधे !

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