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आज मैं आपको ले चलने वाली हूँ एक ऐसी तवायफ़ की दुनिया में… जहाँ सुरों का जादू सिर्फ सुना नहीं जाता था—बल्कि हवा में तैरते हुए दिल पर दस्तक देता था। एक ऐसा दौर… जब नाम कमाना आसान नहीं था, और इज़्ज़त तो और भी मुश्किल। लेकिन उस समय एक ऐसी *तवाइफ़, एक ऐसी अदाकारा, एक ऐसी गायिका आई जिसने पूरे हिंदुस्तान को अपने कदमों में झुका दिया। आज की कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, एक ऐसी आवाज़ की कहानी है जो सौ साल बाद भी कानों में इत्र बनकर उतरती है।एक ऐसी अदाकारा की, जिसने सुरों को पहनावा पहनाया और स्टाइल को तख़्त पर बैठाया। नाम था—गौहर जान! हाँ, वही तवाइफ़ गौहर जान—जिसे कहते थे इंडिया की पहली सेलिब्रिटी, पहली स्टाइल आइकन, और पहली रिकॉर्डेड वॉइस।
कहते हैं..
वक़्त के आईने में जो तस्वीर चमकती है,
वो सिर्फ चेहरा नहीं एक मिसाल होती है।
गौहर के सुर यूँ ही मशहूर नहीं हुए,
हर सुर में उनकी जान होती है…
1902 का जमाना सोचिए… जब माइक्रोफोन नहीं, फैंसी स्टूडियो नहीं… सिर्फ एक बड़ा-सा हॉर्न और उसके सामने बैठी एक बेपनाह आत्मविश्वास से भरी महिला। वो मुस्कुराती, घुँघरू की छन-छन बजती…… और फिर शुरू होता जादू— “My name is Gauhar Jaan…” जी हाँ, इंडिया में रिकॉर्ड होने वाली हर पहली ग्रामोफोन रिकॉर्ड में अंत में यही आवाज़ गूंजती थी—और ये आवाज़ थी, एक तवायफ़ की गौहर जान की। कहते हैं, स्टाइल क्या होता है गौहर जान को देखकर दुनिया ने सीखा था। उस दौर में फैशन स्कूल नहीं थे फैशन खुद गौहर जान थीं। कोलकाता की सड़कों पर जब वो अपनी बग्घी में निकलतीं तो हर पहिये पर एक-एक गुलाब रखा होता था। गौहर ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन करने के लिए 1,000 रुपये का जुर्माना भरा, लेकिन बग्गी में शाम की सैर करना कभी नहीं छोड़ा. उनके मेकअप, उनकी ज्वेलरी, उनकी ड्रेसेज़—सबकी कीमत हजारों में नहीं करोड़ो में होती थी, वो भी उस ज़माने में! बंगाल में उनके एक संरक्षक ने उन्हें एक निजी ट्रेन भी उपहार में दी थी, उन्होंने अपना खुद का कोठा खरीद लिया था. गौहर जान सिर्फ गाती नहीं थीं… वो अपना हर सुर जीती थीं। तवायफों का समाज में जो दर्जा था, उसने उन्हें कभी रोकने की कोशिश तो बहुत की लेकिन गौहर जान ने अपने हुनर से वो दौलत, वो शोहरत, वो मुकाम कमाया जिस तक पहुँचना उस दौर में किसी मर्द के लिए भी आसान नहीं था।
कहते हैं..
मंज़िलें आसान थीं न मुश्किल…
बस हौसले बेमिसाल थे,
जहाँ समाज ने कदम रोक दिए,
वहीं गौहर जान के सुर कमाल थे।
गौहन खान क्रिश्चियन थी. मगर उन्होंने खुर्शीद नामक एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी कर ली. विक्टोरिया ने इस्लाम धर्म अपना लिया और नाम बदलकर गौहर जान रख दिया. उनके मुजरे… उनका ठाठ… उनका अंदाज़… हर रियासत में चर्चा होती थी। राजे-महाराजे तक उनके दीवाने थे। 1911 में उन्हें दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के अवसर पर परफार्मेंस करने के लिए आमंत्रित किया गया था.किंग ने उनकी प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की और अपनी सराहना के प्रतीक के रूप में उन्हें सौ गिन्नियाँ भेंट कीं. लेकिन दोस्तों… हर चमक की तरह, इस चांदनी के पीछे भी काली रातें थीं। शोहरत तो बहुत मिली, पर तन्हाई ने भी उन्हें गले लगाया। हर तालियों की आवाज़ एक दिन धीमी पड़ती है… और ऐसा ही कुछ उनके साथ भी हुआ। अंतिम समय में वो Depression से पीड़ित हो गई.और 56 वर्ष की आयु में मैसूर में उनका इंतकाल हो गया. उस समय उनकी संपत्ति के कई दावेदार आगे आए, उन्हें उम्मीद थी कि वह अपने पीछे पर्याप्त संपत्ति छोड़ गई होंगी. लेकिन जल्द ही यह पता चला कि अपने जीवन के अंतिम दशक में गौहर जान ने अपना सारा पैसा खर्च कर दिया था. फिर भी उनके काम ने उनके बाद की कई पीढ़ियों के गायकों को प्रेरित किया। ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया के लिए उनकी रिकॉर्डिंग ने उन्हें ‘ग्रामोफोन गर्ल’ का नाम दिया. ये कहानी सिर्फ तवायफ की नहीं… किस्मत की जंग की है। एक ऐसी औरत की… जिसने समाज की सीमाओं को तोड़कर दुनिया को बता दिया— कि टैलेंट किसी जगह, किसी नाम, किसी दायरे का मोहताज नहीं होता।”
“ना तख़्त मिला, ना ताज मिला…
फिर भी वो रानी कहलाती थीं,
जिनके कदमों से सुर जन्म लेते,
वो गौहर जान कहलाती थीं।”




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