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सोचिए आपको सज़ा मिल रही हो किसी जुर्म के लिए नहीं, बल्कि अपनी बात कहने के लिए। 16वीं सदी में, जो औरतें बहुत ज़्यादा बोलने वाली, चिड़चिड़ी, या बागी होती थीं, उन्हें स्कोल्ड्स ब्रिडल (Scold's Bridle) पहनने के लिए मजबूर किया जाता था — एक डरावना लोहे का मास्क जो उनके मुंह को बंद कर देता था। इसमें कांटे लगे होते थे जो बोलने की कोशिश करने पर जीभ में धंस जाते थे। उन्हें सड़कों पर घुमाया जाता था — उनका मज़ाक उड़ाया जाता था, बेइज्जत किया जाता था, और चुप करा दिया जाता था। यह सब अपनी आवाज़ उठाने की हिम्मत करने के लिए। यह सिर्फ़ सज़ा नहीं थी — यह समाज का यह कहने का तरीका था, बैठ जाओ। चुप रहो। अपनी जगह जानो। लेकिन सदियों बाद, औरतें पहले से कहीं ज़्यादा ज़ोर से बोलती हैं। उनकी आवाज़ इतिहास की चुप्पी से उठती है। क्योंकि हर निशान, हर चीख, हर खामोश की गई आत्मा ने आज की औरत की ताकत बनाई है।




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