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ये कहानी हैं दुनिया की सबसे पहली और सबसे पवित्र प्रेम कथा की। — एक ऐसी प्रेम गाथा, जो केवल भावनाओं की नहीं, बल्कि बलिदान, सम्मान और तपस्या की मिसाल है। यह है — सती और शिव की कथा… सच्चे प्रेम की सत्य कथा।
शिव — जो योगी हैं, विरक्त हैं, जिनके लिए संसार के मोह–माया का कोई अर्थ नहीं।
सती — जो आदिशक्ति हैं, जिनका हर अंश प्रेम से भरा है।
इन दोनों का मिलन केवल एक विवाह नहीं था यह था सृष्टि के संतुलन का प्रतीक, पुरुष और प्रकृति के एकत्व का प्रतीक। कहानी शुरू होती है राजा दक्ष से — जो ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। उनकी पुत्री थी सती, जिनका हृदय बचपन से ही महादेव के प्रति भक्ति और प्रेम से भरा था। वो महादेव की मूर्ति को देखतीं और खो जातीं। उनके तप, ध्यान और भक्ति ने ही महादेव को प्रसन्न कर दिया। अंततः सती का विवाह त्रिलोकनाथ शिव से हुआ — और यह बना प्रेम और तपस्या का संगम। लेकिन हर प्रेम कहानी में एक परीक्षा होती है और इस प्रेम की परीक्षा बनी — अहंकार। सती के पिता राजा दक्ष को शिव का वैराग्य पसंद नहीं था। उनके मन में अभिमान था कि “कैसे मेरी पुत्री एक ऐसे व्यक्ति से विवाह कर सकती है जो भस्म लगाता है, जो श्मशान में रहता है?” उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, और पूरे देवलोक को निमंत्रण भेजा — बस नहीं बुलाया… शिव और सती को। सती ने पिता का यह अपमान सुना, पर फिर भी अपने प्रेम के आशीर्वाद के लिए वहां जाने की ठानी। शिव ने कहा — “सती, जहाँ अपमान का भय हो, वहाँ जाना उचित नहीं।” लेकिन प्रेम की जिद — भला कौन रोक सका है? सती पहुंचीं उस यज्ञ में, पर वहां उनका स्वागत नहीं हुआ… बल्कि पिता दक्ष ने उनके पति शिव का अपमान किया — सबके सामने और यहीं… प्रेम ने अपना चरम रूप लिया।
सती ने कहा —“जिस शरीर से मेरे प्रभु का अपमान सहा गया है, वह शरीर अब मेरे किसी काम का नहीं।” और उन्होंने उसी अग्निकुंड में आत्मदाह कर लिया। जब महादेव को यह समाचार मिला, उनका क्रोध — ब्रह्मांड को हिला गया। उन्होंने अपने वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने दक्ष यज्ञ को ध्वस्त कर दिया, और अहंकार की जड़ को नष्ट कर दिया। पर यही अंत नहीं था… सती के शरीर को लेकर शिव सृष्टि भर में घूमते रहे, वियोग में, वेदना में, प्रेम में वहीं से जन्म हुआ शक्ति पीठों का — जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ देवी की शक्ति के रूप बस गए। लेकिन युगों बाद, सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया — उसी प्रेम को फिर से पाने के लिए। पार्वती ने बचपन से ही शिव को अपने आराध्य मान लिया था। उन्होंने वर्षों तक कठोर तप किया — आख़िरकार, प्रेम और तपस्या के आगे स्वयं महादेव भी झुक गए। उन्होंने पार्वती को स्वीकार किया — और हुआ सृष्टि का सबसे दिव्य मिलन —शिव और शक्ति का संगम हुआ। यही है वह प्रेम, जो ना जन्म से जुड़ा है, ना देह से यह है आत्मा से आत्मा का मिलन। सती ने दिखाया कि सच्चा प्रेम ईश्वर की तरह होता है — न दिखाई देता है, न मापा जा सकता है, बस महसूस किया जाता है। और शिव ने सिखाया — कि प्रेम का अर्थ किसी को बांधना नहीं, बल्कि उसकी आत्मा को मुक्त करना है। यही है दुनिया की पहली प्रेम कहानी — शिव–सती की अमर कथा, शिव और पार्वती की अमर प्रेम गाथा।




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