अफगानिस्तान और तालिबान : कौन सा मुस्लिम देश किसकी तरफ? जानें यहां

तालिबान और पाकिस्तान के संबंध जगजाहिर हैं.

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ईरान

शिया बहुल देश ईरान का कट्टर सुन्नी संगठन तालिबान के साथ पुराना गतिरोध है. अफगानिस्तान के वर्तमान हालात को देखकर सबसे ज्यादा परेशान ईरान ही है. ईरान की सीमा अफगानिस्तान से सटी हुई है. इस कारण जब भी अफगानिस्तान में अराजकता फैलती है, तब बड़ी संख्या में शरणार्थी ईरान में प्रवेश करते हैं. अफगानी लोग तो ईरान के रास्ते यूरोपीय देशों तक में घुसपैठ करते हैं. ईरान ने हाल में ही तालिबान से काबुल में अपने राजनयिकों के सुरक्षा की गारंटी भी मांगी है. 1998 में 7 ईरानी राजनयिकों और एक पत्रकार की हत्या के बाद तालिबान और ईरान के संबंध कड़वाहट भरे हो गए थे. हालांकि, पिछले महीने ही तालिबान ने ईरान से अच्छे संबंध बनाने की पहल की शुरूआत की है.


सऊदी अरब

इस्लामी दुनिया का सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब वहाबी विचारधारा का सबसे बड़ा समर्थक है. हालांकि, अफगानिस्तान को लेकर इस देश ने अभी तक चुप्पी अख्तियार की हुई है. अभी तक सऊदी अरब अपने दोस्त पाकिस्तान की सहायता से ही तालिबान के साथ डील करता रहा है. 2018 में जब कतर की राजधानी दोहा में अफगान शांति वार्ता शुरू हुई तबसे लेकर अबतक सऊदी अरब दूरी बनाए हुए हैं. हालांकि, 1980 के दशक ने सऊदी ने सोवियत यूनियन के खिलाफ उस समय अफगान मुजाहिदीनों की खुलकर मदद की थी.


कतर

कतर में ही तालिबान का राजनीतिक मुख्यालय है. यही वह देश है जिसने तालिबान को पहली बार दुनिया से संपर्क करने के लिए जगह दी थी. इतना ही नहीं, कतर के सहयोग से ही तालिबान का अफगान सरकार और अमेरिका के साथ बातचीत हो सकी है. कतर अगर समर्थन करना बंद कर दे तो तालिबान का अंतराष्ट्रीय प्रभाव काफी कम हो सकता है.


तुर्की

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन इस समय पूरी दुनिया में इस्लामिक देशों के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं. एर्दोगन भी सुन्नी मुसलमान हैं और तालिबान भी इसी को मानता है. हालांकि, काबुल एयरपोर्ट पर तुर्की की सेना की तैनाती को लेकर तालिबान भड़का हुआ है. तालिबान ने कई बार तुर्की को अंजाम भुगतने की धमकी भी दी है. इधर, एर्दोगन अपने हमदम पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के जरिए तालिबान को साधने में जुटे हुए हैं. एर्दोगन ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि वे जल्द ही तालिबान के साथ बैठक करने वाले हैं. वहीं, खबर यह भी है कि तुर्की मजार-ए-शरीफ में तालिबान से हारकर उज्बेकिस्तान भागे मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम के जरिए भी बातचीत की कोशिश कर सकता है.


पाकिस्तान

तालिबान और पाकिस्तान के संबंध जगजाहिर हैं. तालिबान से अपनी दोस्ती को लेकर ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री आजतक अमेरिका के साथ डील करते आए हैं. वहीं , तालिबान शुरू से ही पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नकारता रहा है. 1996 का तालिबान हो या 2021 का पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ उसके संबंध हमेशा ही मजबूत रहे हैं. इस बार भी तालिबान ने पाकिस्तान की मदद से ही अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है. दूसरी तरफ, अगर अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में हो तो पाकिस्तान उनका इस्तेमाल भारत के साथ कर सकता है. वहीं, अफगानिस्तान की नागरिक सरकार हमेशा से ही पाकिस्तान के लिए सिरदर्द रही है, क्योंकि उनका भारत के साथ मजबूत संबंध रहा है.

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