चॉकलेट बेचकर 17 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं दिनेश, दुनिया के लिए हैं मिसाल

ऐसे में आज हम आपको उस मेहनती पत्रकार शख्स के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने मेहनत और लगन की एक अनूठी मिसाल पैदा की है.

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पत्रकारिता का नाम सुनते ही हम सभी के ज़ेहन में न्यूज चैनल की हैडलाइन्स और अखबार के पन्ने घूमने लगते हैं. हालांकि आज के जमाने में शोहरत और पैसे की चाह में पत्रकारिता के मायने को कही कम ही करके रख दिया है. लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे है जो आज भी पत्रकारिता को एक धर्म की तरह मनाते हैं और सच्चाई की राह पर चाह चलते हैं.

ऐसे में आज हम आपको उस मेहनती पत्रकार शख्स के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने मेहनत और लगन की एक अनूठी मिसाल पैदा की है. जिसे मोह माया की तलब नहीं थी, बल्कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 17 साल तक उस पत्रकारिता को कायम रखा था. इस तस्वीर में आपको कुछ पुराने कागज़ के पन्ने दिख रहे होंगे. दरअसल ये पुराने कागज़ अखबार है. आपको बता दें उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में दिनेश कुमार नाम एक ऐसे पत्रकार थे जिनके पास न अपनी छपाई मशीन थी, न कोई स्टाफ़, मगर 17 साल तक वो अपना हस्तलिखित अखबार चला रहे थे. इनके अख़बार का नाम विद्या दर्शन था.


अखबार लिखने के साथ-साथ लगाते थे फेरी

दिनेश कुमार बचपन से ही समाज के लिए कुछ करना चाहते थे. वो वकालत की पढ़ाई करना चाहते थे, मगर आर्थिक स्थिति सही न होने के चलते दिनेश कुमार ने अपनी पढ़ाई  छोड़ दी. आठवीं तक पढ़ाई करने के बाद दिनेश ने काम करना शुरु कर दिया. काम करने के अलावा वो सामाजिक कार्य भी करते रहे हैं. दिनेश कुमार अच्छे विचारों को समस्त समाज के सामने लाना चाहते थे. ऐसे में दिनेश कुमार ने हाथ से ही लिखकर अपना अख़बार चलाना शुरु कर दिया था. दिनेश कुमार रोज़ सवेरे 10 बजे जिलाधिकारी कार्यालय आते थे और 3 घंटे में अपनी सारी ख़बर लिखते थे. उसके बाद वह अपने काम पर चले जाते थे.

कड़ी मेहनत करके पालते थे परिवार का पेट

हाथ से अख़बार लिखने के बाद दिनेश कुमार इसकी कई फोटोकॉपियां करवाते थे और शहर के प्रमुख चौराहों पर चिपकाते थे. इतना ही  नहीं,  दिनेश कुमार अख़बार की एक कॉपी मुख्यमंत्री कार्यालय और एक कॉपी प्रधानमंत्री कार्यालय फैक्स के जरिए भेजते थे. अख़बार चिपकाने के बाद दिनेश कुमार जीवन निर्वाह करने के लिए अपनी साइकिल के साथ निकल जाते थे और शहर में घूम-घूमकर चॅाकलेट्स और आइसक्रीम बेचते थे. इन्हें बेचने के बाद दिनेश कुमार को करीब 250-300 रुपये मिल जाते हैं. इन पैसों से वो अपने और अपने परिवार का पेट पालते थे.

परिवार पालने और अख़बार लिखने के कारण नहीं मिला शादी का समय

बगैर किसी स्वार्थ और बिना किसी सहायता के दिनेश कुमार ने अपने काम से कई लोगों को प्रभावित किया था. उनकी इसी  मेहनत को  मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी भी सराह चुके थे. वही अख़बार लिखने के कारण दिनेश कुमार ने शादी नहीं की थी. वे कहते थे कि अखबार, खबर और परिवार के कारण कभी समय  ही नहीं मिला कि शादी के बारे में सोच सकें. इसके साथ उनका मानना यह था कि शादी करने के बाद मेरा लिखना बंद हो जाता. दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते है जो अपनी मेहनत के बल पर एक बेहतक समाज बनाना चाहते है. जिनमें से दिनेश कुमार उन्ही लोगों में से एक थे. बिना किसी स्वार्थ और बिना किसी की मदद लिए खुद हाथ से लिखकर अख़बार निकालते थे. ये जानते हुए कि उनको पढ़ने वाले बहुत कम है मगर उन्हें खुद पर पूरा विश्वास था कि  उनके द्वारा लिखी ख़बर समाज के लिए  उपयोगी सिद्ध होगी.

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