जानिए इस वक्त कैसे हैं भारत और अमेरिका के संबंध, क्या चुनाव के बाद आ सकता है बदलाव?

पीएम जवाहरलाल नेहरू ने केन और व्हाइट हाउस तक एक अच्छी पहुंच बनाई थी। इसके बाद फर्स्ट लेडी जैकलीन मार्च 1962 में भारत आई, यह यात्रा सफल नहीं रही।

  • 1919
  • 0

नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं जिसके चलते अमेरिका में जोर शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि चीन और अमेरिका के रिश्ते इन दिनों ठीक नहीं चल रहे हैं उसका मुख्य कारण है कोरोना वायरस। इसके अलावा भारत से भी सीमा विवाद के कारण संबंध बिगड़ गए हैं। इसका असर ये हुआ है कि भारत और अमेरिका के संबंध काफी दुरुस्त हो गए हैं। इस संबंध को कैसे बनाया गया है और कितना पुराना है चलिए डालते हैं इसपर एक नज़र।


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का भारत के लिए महत्व 

अमेरिका के साथ अच्छे संबंध भारत के लिए कई मायनों में महत्व रखते हैं। चाहें वो आर्थिक हो, सामाजिक हो या फिर रणनीतिक। ऐसा भी माना जाता है दोनों ही देशों के मजबूत संबंधों का एक बड़ा कारण है राजनितिक राय। अमेरिका में रहने वाले भारतीय अमेरिका में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, चाहें उनकी राजनीतिक प्राथमिकताएं अलग हैं - सभी भारतीय अपनी जन्मभूमि यानि भारत  और उनकी कर्मभूमि यानि अमेरिका के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए पक्ष दोनों देशों का लेते हैं।

इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि पहले अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की तरफ हुआ करता था। लेकिन 2020 आते-आते इसमें बदलाव हुआ और भारत और अमेरिका के संबंध अच्छे हो गए।


क्या चुनाव के बाद चीन के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा?

अब एक सवाल ये खड़ा होता है कि अमेरिका के चुनाव के बाद क्या चीन अमेरिका के संबंध में बदलाव आएगा? जो बिडेन और ट्रम्प दोनों ही चीन की हरकतों से वाकिफ हैं। लेकिन शायद इतना अंतर हो सकता है कि दोनों के चीन से निपटने के तरीके अलग हो सकते हैं।किसी भी परिस्थिति में संतुलन को साधना सबसे ज्यादा चुनौती वाला काम होता है। भारत अकेला चीन से नहीं निपट सकता इसलिए उसे अमेरिका जैसे और शक्तिशाली देशों की मदद की जरूरत होगी। 


क्या रिपब्लिकन राष्ट्रपति हैं ज्यादा भारत समर्थक?

अगर इतिहास पर नज़र डालें तो रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति का झुकाव भारत की तरफ ज्यादा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से खासतौर पर दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों को भारत से सबसे ज्यादा निकट और पसंद करने वाला देखा गया है। 1960 में जॉन एफ कैनेडी, वर्ष 2000 में राष्ट्रपति बने जॉर्ज डब्ल्यू बुश। जिनमे से एक डेमोक्रेट पार्टी से थे और दूसरे रिपब्लिकन से थे। अमेरिका के दोनों ही राष्ट्रपतियों ने भारत के साथ संबंधों को दुरुस्त किया। लेकिन चीन का हस्तक्षेप बरक़रार रहा और भारत और अमेरिका की केमिस्ट्री बेहतर नहीं होने दी।

 मिली कुछ जानकारियों से पता चलता है कि 1960 में कैनेडी चीन के खिलाफ भारत को समर्थन देने के लिए तैयार थे। इसके लिए उन्होंने अपने भरोसेमंद व्यक्ति प्रोफेसर जॉन केनेथ को राजदूत बनाकर भेजा। पीएम जवाहरलाल नेहरू ने केन और व्हाइट हाउस तक एक अच्छी पहुंच बनाई थी। इसके बाद फर्स्ट लेडी जैकलीन मार्च 1962 में भारत आई, यह यात्रा सफल नहीं रही।  

भारत को आर्थिक सहायता भी मिली। केनेडी ने भी भारत के लिए एक  मेहत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने भारत-चीन युद्ध के समय भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने से रोक दिया । कैनेडी चाहते थे कि चीन से पहले भारत द्वारा परमाणु हथियार विकसित किये जाए ।

अगर 1963 में कैनेडी की हत्या नहीं हुई होती और 1964 में नेहरू की मृत्यु नहीं हुई होती, तो 1960 से 1970 के दौरान अमेरिका और भारत संबंधों ने इतिहास में एक अलग पहचान बना ली होती। अब बात करते हैं बुश की जो भारत के साथ अपने संबंधों को हमेशा मजबूत और अच्छा बनाना चाहते थे। सितंबर 2008 में हुई प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की राष्ट्रपति बुश के साथ आखिरी बैठक में वो भावुक हो गए थे।

इसी तरह, अमेरिका और भारत के बीच संबंधों का सबसे बुरा दौर रिपब्लिकन पार्टी के रिचर्ड निक्सन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिंटन के समय पर था।  1970 के समय में निक्सन प्रेसीडेंसी का पाकिस्तान की तरफ ज्यादा झुकाव था।

1990 में भारत और अमेरिका के संबंधों में और बदलाव आया। भारत को परमाणु परिक्षण रोकने के लिए दवाब बनाया गया आदि। 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद स्ट्रोब टैलबोट और विदेश मंत्री जसवंत सिंह  बातचीत की जिससे संबंध फिर से गर्म हुए।

तो यहां देखा जा सकता है कि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टी के राष्ट्रपतियों ने भारत के साथ संबंध स्थापित करने का प्रयास किया है।


RELATED ARTICLE

LEAVE A REPLY

POST COMMENT