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17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है इस दिन भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा जयंती के रूप में यह दिन मनाया जाता है जो लोग व्यापार और दुकान कारखानों का काम करते हैं वह मशीनों की पूजा करते हैं। विश्वकर्मा देवता को सुख-समृद्धि का देवता माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्ग, त्रेता युग में लंका, द्वापर में द्वारिका और कलयुग में जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों का निर्माण किया था।
किन-किन सामग्रियों की पड़ती है जरूरत
- भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर
- लकड़ी की चौकी
- पीला कपड़ा
- मिट्टी का कलश
- जनेऊ
- हल्दी
- रोली
- अक्षत
- सुपारी
- मौली
- लॉन्ग
- पीला अश्वगंधा
- कपूर
- देसी घी
- हवन कुंड
- आम की लकड़ी
- गंगाजल
- इलायची
- सुखा गोला
- नारियल
- मिठाई
- दही
- खीरा
- शहद
- पंचमेवा
विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त 17 सितंबर को सुबह 7:21 से सुबह 11:00 22 मिनट तक रहता है। इस दौरान भक्त मुहूर्त के हिसाब से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
कर्म पूजा का महत्व
विश्वकर्मा पूजा को पूरे विधि विधान के साथ मनाया जाता है इस दिन गाड़ियों और मशीनों की खासकर पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार में तरक्की होती है। इस दिन कारखाना, वाहन, यंत्र और मशीन की पूजा की जाती है ताकि भगवान का आशीर्वाद बना रहे। भगवान विश्वकर्मा की कृपा से कारखाने की मशीन कभी खराब नहीं होती कार्य में उन्नति होती है।




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