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प्रयागराज में महाकुंभ का पहला अमृत स्नान 14 जनवरी को किया गया था। इस दौरान सूर्य देव का धनु राशि से मकर में प्रवेश हुआ था और भगवान सूर्य का उत्तरायण भी हुआ था। मकर संक्रांति की शुभ बेला में ब्रह्म मुहूर्त में प्रयागराज के संगम तट पर भक्तों की भारी भीड़ लगी हुई थी। महाकुंभ में परंपरा के अनुसार साधु संत आचार्य नगर साधु अघोरियों और महिला साधुओं ने पहले स्नान किया था। इसके बाद करोड़ों भक्तों ने संगम में स्नान किया। इस तरह से अमृत स्नान को शाही स्नान कहा जाता है।
सालों बाद बना संयोग
इस बार 144 साल बाद यह सहयोग बना है जब महाकुंभ के संगम में डुबकी लगाने के लिए अखाड़े की साधु संत की संख्या कई गुना बढ़ी है। सनातन धर्म के अनुसार 13 अखाड़े हैं लेकिन महाकुंभ में जूना अखाड़ा और निरंजनी अखाड़े के नागा साधुओं को देखने के लिए भक्तों की खूब भीड़ लगी थी।
महत्व गिरी महाराज
संगम की तरफ जाने वाले साधु संतों को पुष्प वर्षा से खुश किया गया और सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा जुलूस निकाला गया। विधिवत स्नान करने के बाद पूजा अर्चना की जाती है जिसका महत्व गिरी महाराज ने अमृत स्नान को लेकर समझाया था। महाराज ने कहा था कि अमृत स्नान का अर्थ है वृष राशि में बृहस्पति का आगमन और मकर राशि में सूर्य और चंद्र का आगमन होना। हर बार यह संयोग 12 सालों के बाद बनता है।




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