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महाकुंभ के मेले में कई साधु संत नजर आते हैं। इन बाबाओ के दर्शन करने के लिए देश दुनिया से लोग आते हैं। कुंभ के मेले में अमृत स्नान करने के लिए नागा साधु सबसे पहले आते हैं। अमृत स्नान के दिन महाकुंभ में बाबा और साधु संत संगम नदी में स्नान करते हैं। महाकुंभ में अमृत स्नान करना आकर्षण का केंद्र माना जाता है इसके लिए कई प्रबंध भी किए गए हैं। बड़ी संख्या में लोग महाकुंभ में नागा संन्यासी भी बनते हैं। नागा साधु बनने के लिए कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है।
नागा साधु बनने में कितना समय लगेगा
नागा साधु बनने के लिए 12 साल का समय लगता है। नागा साधुओं के बीच शामिल होने के लिए उनसे जुड़ी जानकारी निकालने में 6 साल से भी अधिक का समय लग जाता है। इस दौरान महाकुंभ में नागा साधु बनने वाले सदस्य लंगोट पहनते हैं और स्नान के साथ ही लंगोट का भी त्याग कर देते हैं और जीवन भर इसी तरह से रहते हैं।
नागा साधुओं की उपलब्धियां
नागा साधु बनने के बाद अलग-अलग तरह के नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद क्षेत्र में कुंभ के मेले में उपाधि मिलने वाले नागा साधुओं को उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा कहा जाता है। इस तरह से नागा साधुओं को उपाधि दी जाती है।
नागा साधुओं के पद
नागा साधुओं को दीक्षा के बाद उन्हे पद दिया जाता है। इन पदों में कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव शामिल है।
नागा दिनचर्या
नागा साधुओं की दिनचर्या बिल्कुल अलग होती है। नागा साधु रोजाना क्रिया कर्म और स्नान करते हैं इसके बाद श्रृंगार भी करते हैं। इतना करने के बाद हवन, ध्यान, प्राणायाम, कपाल, क्रिया, नौली क्रिया भी करते हैं। नागा साधु दिन में एक बार खाना खाते हैं और जमीन पर लगे बिस्तर पर सोते हैं।




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