11 दिन पेड़ पर ही रहा ये युवक ताकि घरवालों को Corona न हो

युवक की इस सोच के सामने हर कोई नतमस्तक है.

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कोरोना पॉजीटिव (Corona Positive) होने पर लोग अलग रहते हैं ताकि वायरस का संक्रमण दूसरों को न फैले. तेलंगाना (Telangana) में एक 18 साल के युवक का कोविड परीक्षण पॉजिटिव आने के बाद उसने एक पेड़ पर 11 दिन बिताए क्योंकि वह अपने छोटे से घर में खुद को अलग नहीं कर सकता था. घर में रहने पर अपने माता-पिता और बहन के संक्रमित होने के डर से, रामावत शिव नाइक ने घर के पास एक पेड़ पर अपनी खुद की अनोखी 'आइसोलेशन सुविधा' स्थापित की.

पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बना

युवक की इस सोच के सामने हर कोई नतमस्तक है. यह युवक नलगोंडा जिले के कोठानंदिकोंडा गांव का रहने वाला है.  हैदराबाद के कॉलेज में इंजीनियरिंग का छात्र है. कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने के बाद कॉलेज बंद हो गया था कुछ सप्ताह पहले कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण कॉलेज बंद होते ही शिव घर लौट आए थे. अपने परिवार की मदद करने के लिए, उन्होंने किसानों से धान खरीदने के लिए गांव में राज्य सरकार द्वारा स्थापित धान खरीद केंद्र में 'हमाली' (कुली) के रूप में काम करना शुरू कर दिया.

बुखार से पीड़ित होने और कोविड -19 के अन्य संदिग्ध लक्षण के बाद उसने अपने गांव से लगभग पांच किमी दूर स्थित एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में परीक्षण किया. उनका 4 मई को कोविड परीक्षण पॉजिटिव आया. उनके हल्के लक्षण थे तो पीएचसी के एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने उन्हें बताया कि अस्पताल में भर्ती होने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन उन्हें घर पर आईसोलेशन में रहने की सलाह दी.

अपने परिवार के चार सदस्यों के साथ एक कमरे के घर में और एक शौचालय के साथ शिव को लगा कि आइसोलेशन में रहना मुमकिन नहीं है. अपने गांव या आस-पास के गांवों में सरकार द्वारा संचालित आइसोलेशन की सुविधा नहीं होने के कारण युवा ने अनोखा तरीका अपनाया. शिव ने कहा, "मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था. मैं नहीं चाहता था कि मेरे परिवार के सदस्यों को मेरी वजह से परेशानी हो."

इसलिए उन्होंने अपने आइसोलेशन के लिए पेड़ को इस उम्मीद में चुना . उन्होंने अपने घर के सामने एक पेड़ को आइसोलेशन फैसिलिटी के तौर पर चुना. पेड़, जिसे तेलुगु में 'गनुगा' कहा जाता है (पोंगम का पेड़) इसमें कुछ औषधीय गुण भी होते हैं.

उन्होंने बांस की छड़ियों, रस्सियों और कुछ अन्य वस्तुओं का उपयोग करके एक खाट बनाई और उसे पेड़ की शाखाओं से बांध दिया. शिव के माता-पिता उनके भोजन, पानी और अन्य जरूरी चीजों को बाल्टी में रखते थे और वह उसी को रस्सी से खींचते थे.

शिव अपने मोबाइल फोन के माध्यम से परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहे, जिससे उन्हें समय काटने में आसानी हुई. उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को क्षेत्र में एक आइसोलेशन केंद्र स्थापित करने के लिए कुछ संदेश भेजे.

उनकी अपील और उनके गांव और लगभग एक दर्जन अन्य गांवों के लोगों के बढ़ते अनुरोधों के जवाब में, अधिकारियों ने पिछले सप्ताह के आखिर में एक आइसोलेशन केंद्र स्थापित किया. उन्होंने अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए बने एक छात्रावास को एक आइसोलेशन सेंटर में बदल दिया. उन्होंने शिव को केंद्र में जाने के लिए भी राजी किया. वह जल्द ही अपना आइसोलेशन पीरियड पूरा करने वाले हैं.

शिवा की घटना ने गांवों में कोविड संक्रमित लोगों की समस्याओं को उजागर किया. उन्होंने कहा कि बगैर वॉशरूम या सिंगल वॉशरूम वाले छोटे घरों में रहकर वे खुद को आइसोलेट नहीं कर सकते हैं.


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