क्या चिराग पासवान का ये कदम नितीश पर पड़ेगा भारी, क्या है लोजपा की नीति?

2014 में एक बार फिर पासवान ने मोदी लहर का आंकलन कर लिया था उस समय नीतीश कुमार ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पूरी तरह से गठबंधन छोड़ दिया।

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की तैयारियां जोरों से चल रही है। सभी पार्टियां अपनी-अपनी जगह पूरी तैयारियों के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं।  हालांकि अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक या मिली जानकारियों के मुताबिक ऐसा देखा गया है कि भले ही नितीश में लाख खामियां  हैं लेकिन फिर भी किसी भी पार्टी के पास ऐसा कोई दमदार चेहरा नहीं है जो नितीश को टक्कर दे सके। लेकिन फिर भी पार्टियां  प्रयास में जुटी हुई हैं। पिछले कुछ दिनों में लोक जनशक्ति पार्टी यानि लोजपा कुछ खास सुर्ख़ियों में आई है।  मुख्य कारण उसका ऐसा ऐलान करना है कि वो चुनावी मैदान में इस बार अकेली ही उतरेगी। लोजपा  के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अपने आप में  प्रतिवाभन व्यक्ति है। इसका एक उदहारण 1990 के दशक के मध्य में देखा गया था जब  रामविलास पासवान के राजनीतिक कौशल ने उनको केंद्र की लगभग हर सरकार का हिस्सा बनने में मदद की।


उनकी सबसे बड़ी विफलता 2009 के लोकसभा चुनाव हैं रामविलास पासवान 33 वर्षों में अपना पहला चुनाव हार गए और उनका लोजपा खाता खोलने में असफल रहा। लेकिन उन्होंने संशोधन किया और 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा के साथ हाथ मिलाया।  उनकी बार बार सरकार बदलने की इसी आदत ने उन्हें मौसम के अनुसार बदलने का टैग दे दिया है जो कहीं न कहीं उनकी छवि को बिगड़ता है। पिछले कुछ समय से रामविलास पासवान की तबियत खराब है, हाल ही में एक सर्जरीके चलते वह दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने बेटे और लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान को इसबार चुनावी मैदान में उतारा है।


क्या चिराग पड़ सकते हैं नितीश पर भारी?

चिराग पासवान और रामविलास पासवान बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चर्चा का विषय बन गए हैं, क्योंकि लोजपा ने राज्य के चुनाव अकेले लड़ने और जदयू के साथ मुकाबला करने का फैसला किया है। चिराग पासवान बिहार में चुनाव के बाद भाजपा-एलजेपी गठबंधन को कड़ी मेहनत से बेच रहे हैं, जिससे जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अस्थिर हो गए हैं और भाजपा नेताओं को एक अजीब स्थिति में डाल दिया है।

नीतीश कुमार ने भी रामविलास पासवान के साथ चिराग पासवान को उनके समीकरण की याद दिलाने की कोशिश की। नीतीश कुमार ने कहा, "रामविलास पासवान अस्वस्थ हैं। हम चाहते हैं कि वह ठीक हो जाएं। क्या वह राज्यसभा में जेडीयू की मदद के बिना पहुंचे? बिहार विधानसभा में उनके पास कितनी सीटें हैं? दो? तो, भाजपा-जदयू ने उन्हें टिकट दिया राज्यसभा के लिए। हमें क्या करना है जो कोई कहता है? "

नितीश की ये प्रतिक्रिया चिराग की पार्टी यानि लोजपा के उन पोस्टरों पर आई है जिसमें कहा गया था, "मोदी तुझे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं [मोदी के खिलाफ कुछ नहीं है, लेकिन नीतीश को नहीं बख्शेंगे"। ऐसा ही राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुधरा राजे के प्रतिद्वंद्वियों द्वारा 2018 के राज्य चुनावों में किया गया था और इसी तरह के नारे का इस्तेमाल किया गया था।



क्या चिराग अकेले हैं?

जदयू में कई लोगों का मानना ​​है कि चिराग पासवान अकेले काम नहीं कर रहे हैं और उन्हें भाजपा के कुछ लोगों का समर्थन  है। राजेंद्र सिंह जैसे कुछ नेताओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के रैंक में प्रशिक्षित किया जाता है। कथा यह है कि भाजपा नीतीश कुमार को "खत्म" करना चाहती है और उस एजेंडे के लिए चिराग पासवान का उपयोग कर रही है। चिराग के इस तरह से चुनाव लड़ने से बिहार में भाजपा के कैडरों में एक धारणा बन गई है कि लोजपा प्रतिद्वंद्वी नहीं है।वो सिर्फ नितीश के खिलाफ है।यही कारण है कि सब निश्चिंत है और उन्हें समर्थन कर रहे हैं। 

जेडीयू और भाजपा में कुछ नेताओं को यह आभास हो रहा है कि चिराग पासवान अकेले काम कर रहे हैं। जबकि ये देखा गया है कि जबसे राम विलास पासवान कारण दिल्ली में भर्ती है उनके बेटे चिराग लगातार उनके पास ही हैं। ये देखकर यह मानना ​​बेवकूफी ही होगी कि बिहार चुनाव में जेडीयू को चुनौती देने के लिए चिराग पासवान के फैसले में रामविलास पासवान की भूमिका नहीं थी।



 इससे  क्या फर्क पड़ेगा?

इस बात का जवाब तो रामविलास पासवान द्वारा कई बार उठाये गए कदम ही दे सकते हैं। क्योंकि रामविलास पासवान ऐसा कई बार कर चुके हैं। राम विलास पासवान 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए से बाहर निकलने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने मंत्री पद और गठबंधन तोड़ने का कारण गुजरात में हुए दंगों को बताया था। रामविलास पासवान ने स्थिति का सही आकलन किया था। क्योंकि उस बार वाजपेयी सरकार प्रभावशाली इंडिया शाइनिंग अभियान के बावजूद भी संसदीय चुनाव हार गई।

2014 में एक बार फिर  पासवान ने मोदी लहर का आंकलन कर लिया था उस समय नीतीश कुमार ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पूरी तरह से गठबंधन छोड़ दिया।

बिहार विधानसभा चुनाव 2005  में, रामविलास पासवान ने इसका सही आकलन किया था कि बिहार का चुनावी मूड लालू प्रसाद के राजद के पक्ष में नहीं था। पासवान और प्रसाद दोनों केंद्र में यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। पासवान ने राजद के खिलाफ उम्मीदवार उतारे लेकिन कांग्रेस के खिलाफ नहीं।

राजद ने फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवा दी। वह अक्टूबर 2005 के चुनावों के लिए एनडीए के पक्ष में नहीं गए क्योंकि इसका मतलब कुछ भी नहीं के बदले में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना था।

इतिहास बिहार में खुद को दोहराता है, कम से कम पासवानों के लिए। लेकिन क्या चिराग पासवान ने जो किया है, उसमें नीतीश कुमार के लिए गहरा संदेश है? क्या मौसम संबंधी पासवानों ने 2020 के लालू प्रसाद को 2020 के नीतीश कुमार में देखा है?

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