बनारस की जान है तुलसी घाट, जानिए कैसे राम लीला का मंच बनता है उसकी शान

वाराणसी में सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक वहां की तुलसी घाट। ऐसे में अगर आप बनारस में घूमने का प्लान बना रहे है तो अपनी ट्रेवलिंग लिस्ट में तुलसी घाट को भी जोड़े।

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वाराणसी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक शहर है जो हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। बहुत से लोग मुक्ति और शुद्धिकरण के लिए भी यहां आते हैं। वहीं वाराणसी हिंदू धर्म के सात पवित्र शहरों में से एक है  जो तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ टूरिस्ट प्लेस भी  है। वाराणसी में आने वाला कोई भी व्यक्ति इस जगह पर आकर बहुत अच्छा महसूस करता है। यहां के तीर्थ स्थलों पर पैदल चलने के बाद कोई भी धन्य महसूस करता है। वाराणसी कई विशाल मंदिरों के अलावा हर साल घाटों और कई अन्य लोकप्रिय स्थानों पर आने वाले लाखों टूरिस्ट को आकर्षित करता है। यह धार्मिक स्थान न केवल भारतीय यात्रियों को बल्कि विदेशी टूरिस्टों  द्वारा भी पसंद किया जाता है।आपको बता दें कि  वाराणसी में सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों  में से एक वहां की तुलसी घाट। वही इस घाट को "लोलार्क घाट" भी कहा जाता है।तुलसी घाट वाराणसी की फेमस घाट ही नहीं है बल्कि एक  पर्यटन स्थल है। तुलसी घाट की सांस्कृतिक विरासत इसके आध्यात्मिक कद के बारे में बताती है। ऐसा माना जाता है कि मध्ययुगीन संत तुलसी दास ने पवित्र महाकाव्य रामचरितमानस के अवधी संस्करण की रचना की थी। ऐसे  में अगर आप बनारस में घूमने का प्लान बना रहे है तो अपनी ट्रेवलिंग लिस्ट में तुलसी घाट को भी जोड़े। 

आइए  बताते तुलसी घाट  का नाम लोलार्क घाट" कैसे पड़ा? 

इस घाट पर भगवान सूर्य का मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि लोलार्क कुंड में स्नान करने से जल्द ही संतान की इच्छा पूरी होती है। इसी घाट का नाम तुलसीदास जी के नाम पर रखा गया है। यही नहीं भादों के महीने में इस घाट पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान कृष्ण लीला की जाती है जबकि कार्तिक माह में लीला समाप्त होती है। वही कृष्ण लीला नाट्य मंचन की शुरुआत संत तुलसी दास जी ने की थी। इस घाट से संत तुलसीदास जी का गहरा संबंध है जो आज भी जीवित है। इसी घाट पर संत तुलसीदास ने हनुमान मंदिर बनवाया था। जहां आज भी नियमित रूप से पूजा आरती की जाती है

ऐसा माना जाता है कि तुलसी घाट पर ही संत तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की थी। कथा के अनुसार जब तुलसीदास जी रामचरितमानस को लिख रहे थे तब रामचरितमानस उनके हाथों से फिसल गई लेकिन रामचरितमानस गंगा में डूबी तक नहीं वह केवल गंगा नदी की सतह पर तैरती रही तब संत तुलसीदास जी ने गंगा में प्रवेश किया और एक बार फिर रामचरितमानस प्राप्त किया।

आज तक सुरक्षित रखें गए हैं संत तुलसीदास जी से जुड़े अवशेष

इसी तुलसी घाट पर ही पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। इसके बाद से तुलसी घाट पर भगवान राम का मंदिर को बनाया गया और हर साल यहां पर राम लीला का नाट्य मंचन होने लगा। ऐसा कहा जाता है कि इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी पंचतत्व में विलीन हुए थे। यही नहीं उससे जुड़े अवशेष आज भी इस स्थान पर संरक्षित हैं। इनमें हनुमान जी की मूर्ति, लकड़ी के खंभे और तकिया आदि शामिल हैं।

तुलसी घाट पर बड़ी संख्या में हर साल कार्तिक महीने में कई टूरिस्ट आते हैं क्योंकि  इस महीने में देव दिवाली मनाई जाती है। इसके साथ ही कृष्ण लीला को दर्शाया जाता। वहीं ऐसा कहा जाता है कि लोलार्क कुंड में स्नान और ध्यान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तो ऐसे में अगर आप बनारस जाते हैं तो तुलसी घाट जरूर जाएं।

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